अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करते-करते मानो हिंदी का असली स्वाद ही बिसरा गया है।
जब मन से लिखने बैठो तो मानो शब्द अपने से कागज़ पर उतरने लगते हैं। अपना लिखा ही पढ़कर ही भाषा की शक्ति का ज्ञान होता है। शायद इसी को कहते है मन से सीधा कागज़ पर उतारना।
इसलिए मूल प्रारूप हिंदी में बनाना चाहिए फिर उसका अंग्रेजी अनुवाद करना बेहतर होता है। पर हम सब इसके उलट पहले अंग्रेजी में सिर खपाई करते हैं फिर हिंदी बनाते हैं बस यही चूक है।
इससे आभास होता है कि हम अपनी भाषा के साथ नहीं बल्कि अपने साथ कितना बड़ा अन्याय कर रहे है।
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