Monday, June 16, 2014

IIMC Hindi Journalism Batch 1994-95 (हिंदी पत्रकारिता के संगी-साथियों)



मेरी इच्छाशक्ति और संकल्प शक्ति ने ही मुझे मेरी मंजिल आईआईएमसी तक पहुंचाया। हमारे बैच में भी मुझसे काबिल और पढ़ाकू शिवप्रसाद जोशी को दूसरी बार में सफलता मिली। 
जीवन में कुछ मिलना, न मिलना, मजिल तक पहुँचना, आधे रास्ते में लक्ष्य को बिसरा देना व्यक्ति की अपनी सोच पर निर्भर करता है।
अब आप किसी और चीज़ में रमकर, न हासिल होने वाले लक्ष्य को कमतर आंकना आंके तो यह आपकी अपनी कमख्याली की स्वीकारोक्ति है, इस से ज्यादा कुछ नहीं। 
आज रविश कुमार, सुप्रिया प्रसाद, संगीता तिवारी, शालिनी जोशी, अमरेंद्र किशोर, सर्वेश तिवारी, सुभाष, सीमा, पवन जिंदल, विकास मिश्रा, शिवप्रसाद जोशी, रत्नेश, राजीव रंजन, प्रमोद सिन्हा, प्रमोद चौहान, सत्य प्रकाश, मिहिर कुमार, अमृता मौर्या, अमन कुमार, उत्पल चौधरी, कमलेश मीणा का अपने अपने क्षेत्र में माहिर और नामचीन होना मेरी बात की ताकीद करता है। 
मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि हिंदी पत्रकारिता के इन संगी-साथियों से मैंने बिना कुछ पूछे-कहे बिना काफी कुछ सीखा दूसरों के बारे में मैं नहीं जानता। 
जहां तक मेरी बात है तो इन सब लोगों की सफलता, मुझे अपनी ही कामयाबी दिखती है। यह स्वाभाविक भी है, जैसी सीरत होगी अक्स में सूरत भी वैसी ही दिखेगी। मुझे लगता है की हमारे बैच के मित्रों को किसी को कुछ साबित नहीं करना है क्योंकि दुनिया उनके लहराते परचम को पहले से ही सलामी दे चुकी है। 
अब सोते हुए को तो कोई भी जगा सकता है और जागकर सोने का नाटक करने वाले को भगवान भी नहीं। वैसे भी यह हमारी बात है सो मेरे अपने विभीषण कहे या कुछ और रहेंगे मेरे दुःख-सुख के साथी ही। 

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