आईआईएमसी के डिग्री कागज़ का टुकड़ा भर नहीं है, वह तो मिटटी की तासीर ही कुछ ऐसी है की वहां से निकला हर शख्स कुछ अलहदा सा है।
और वैसे भी मोल मिट्ठी का ही होता है.… बाकी जगत, सब मिथ्या तो है।मिटटी है, मिटटी हो जाना है, संसार है कागज़ की पुड़िया बूंद पड़े गल जाना है।
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