Saturday, February 18, 2017

Asar us Sanadid_Syed Ahmed_History of Delhi_सैयद अहमद_दिल्ली का इतिहास



आज सैयद अहमद खाँ की पहचान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और मुस्लिम समाज में जागृति लाने वाले व्यक्ति के रूप में ही सीमित हो गई है। यह बात कम-जानी है कि सैयद ने दिल्ली में सदर अमीन के पद पर कार्य करते हुए दिल्ली के ऐतिहासिक भवनों पर अपनी पहली पुस्तक लिखी। 1847 में उर्दू में प्रकाशित ‘आसार-अल-सनादीद' पुस्तक में दिल्ली का संक्षिप्त इतिहास, उसकी प्रसिद्ध इमारतों, महलों, हवेलियों और स्मृतियों का सविस्तार वर्णन तथा 120 विद्धानों और योग्य व्यक्तियों का हाल लिखा गया है। उस दौर में फारसी-उर्दू में भी इस तरह की कोई किताब नहीं थी। दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज मानी जाने वाली इस पुस्तक का उसी नाम से सात साल बाद 1854 में एक संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण छपा।


"आसार-अल-सनादीद" में एक व्यापक प्रस्तावना, उसके बाद चार अध्यायों में बंटे मुख्य पाठ के साथ नमूने के तौर पर एक सौ से अधिक चित्रांकन है। इतना ही नहीं, दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित चार शहरियों के तारीफ करने वाले बयान भी हैं। ये सभी लेखक की तुलना में काफी उम्रदराज थे पर उन्होंने सैयद की युवा ऊर्जा और बुद्धि की मुक्तकंठ प्रशंसा की है। ये व्यक्ति हैं, लोहारू के नवाब जियाउद्दीन खान, जिनके समृध्द पुस्तकालय से हेनरी. एम. इलियट के शोध के लिए किताबें मिली। अंग्रेजों की दिल्ली में सबसे बड़े सरकारी ओहदेदार भारतीय मुफ्ती सदरूद्दीन अजरूदा, मशहूर शायर मिर्जा असदुल्ला खान गालिब और दिल्ली कॉलेज में फारसी के उस्ताद मौलवी इमाम बख्शी साहब। सैयद अहमद ने नवाब के प्रशंसात्मक गीत को तवज्जो देते हुए पुस्तक में उसे अपनी प्रस्तावना से पहले जगह दी। जबकि दूसरों का नाम पुस्तक के अंत में आया। हैरानी की बात यह है कि मुग़ल सम्राट बहादुर शाह दूसरे पर अपनी प्रविष्टि में सैयद अहमद ने अकारण मुगल सम्राट की वार्षिक आय कुल सोलह लाख तीन हजार रुपए की सटीक विवरण दिया है। और उसके बारे में एक अलग किताब में और अधिक लिखने के लिए वादा करते हुए यह बताते है कि वे एक किताब पर काम कर रहे है। वैसे इस बात का कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है कि ऐसी कोई किताब थी या कभी लिखी भी गई।


"आसार-अल-सनादीद" सैयद अहमद का पहला बड़ा प्रकाशन था, लेकिन यह उनकी पहली किताब नहीं थी। 1847 तक उनकी छह दूसरी पुस्तकें छप चुकी थी, जिनमें से पहली किताब दिल्ली और इतिहास से जुड़ी थी। सैयद ने अपने संरक्षक और अंग्रेज उच्चाधिकारी रॉबर्ट एन. सी. हैमिल्टन के कहने पर दिल्ली के शासकों के बारे में कालानुक्रमिक तालिकाओं वाली फारसी में एक संकलित की, जिसमें तैमूरलंग से लेकर बहादुर शाह दूसरा, जिसमें गैर-तैमूरी और पठान शासक भी शामिल थे। उन्होंने इसे जाम-ए-जाम का नाम दिया। अप्रैल 1839 में पूरी हुई यह किताब 1840 में प्रकाशित हुर्ह। इसमें लेखक का नाम मुंशी सैयद अहमद खान दिया गया था। इस पुस्तक के अंत में की गई टिप्पणी-यह छह महीने में पूरी की गई-से पता चलता है कि उस समय लिखवाई गई जब हैमिल्टन और सैयद अहमद दोनों दिल्ली में थे। 

पुस्तक के अंत में, सैयद अहमद से इतिहास के उन उन्नीस पुस्तकों को सूची दी है, जिनमें से उन्होंने अपनी जानकारी जुटाई। इतना ही नहीं, उन्होंने कई अनाम पांडुलिपियों और व्यक्तियों से सलाह लेने का भी दावा किया है।


Asar-us-Sanadid - (The Remnants of Ancient Heroes) 


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