मैं भी बस अभी अभी बच्चों को स्कूल छोड़ कर आ रहा हूँ. बस निकल गई सो स्कूल तक की दौड़ हो गई. सुबह गाड़ी चलाना भी बाजीगिरी है.
महानगर में सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ने से शुरू होने वाली अग्नि परीक्षा, दोपहर में दफ्तर की मूर्खता और शाम को फिर ट्रैफिक की मार क्या इसी जीवन को जीने के लिए हम यहाँ आए है?
पर शायद मीडिया के लिए यह कोई सवाल नहीं है. जब कोई बड़ा हादसा होगा राजधानी में.
स्कूल की बस नदी में गिरेगी तब फिर यह सवाल एकदिनी क्रिकेट मैच की तरह खेले जायेंगे! पहले पेज से सम्पादकीय तक.
फिर सब मानो दोबारा लग जायेंगे फिर उसी महानगर की चूहा दौड़ में!
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