Rajput Mewar_Jauhar_Nirala_राजपूत वीरांगनाओं का जौहर_निराला_प्रताप
एक ओर मुगलों की हर्ष-ध्वनि हो रही थी, दूसरी ओर राजपूत वीरांगनाओं का जौहर! चित्तौड़ गढ़ के टूटने पर बड़ा कोलाहल करते हुए मुगल सम्राट उस नगर के भीतर घुसे। उन्हें आशा थी कि तुर्की से आये हुए सिपाहियों के घर विधवा राजपूत-रमणियों से आबाद होंगे। अकबर चित्तौड़ के अन्दर गये, तब उनकी सम्पूर्ण आशा धूल में मिल गयी, कुछ भी हाथ नहीं लगा। एकमात्र चतुर्भजी देवी के मंदिर का जलता हुआ दीपक और जन शून्य भवनों के विशाल अद्भुत कारीगरी के साक्षी दरवाजे, मुगल बादशाह की लुण्ठन वृत्ति को कुछ संतोष देने के लिए सजग खड़े थे। जैसे आत्माहुति के लिए वे भी तैयार होकर उस विपुल शून्यता में उसे ललकार रहे हों।
-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महाराणा प्रताप उपन्यास में
No comments:
Post a Comment