Sunday, February 5, 2017

सरोकार से कारोबार तक_Film Industry_marketing compulsions

रईस फिल्म का पोस्टर 

"चक दे इंडिया" से लेकर "रईस" तक. इन फिल्मों में पोलिटिकल मुस्लिम "ओवर टोन" साफ दिखता है. रईस एक गुंडा, मवाली था न कि कोई रोल मॉडल. बाकि आमिर खान ने अखाड़ों से हनुमानजी की प्रतिमा यूहीं गायब नहीं की, और न ही फोगट परिवार को मांसाहारी दिखाया है, पर्दे पर. जबकि पूरा परिवार शाकाहारी है.
जब आमिर एक पत्नी छोड़कर, बिना वजह, दूसरी से शादी करता है तो वह "लार्जर देन लाइफ" की बात नहीं होती है. यह सब बाज़ार के सफल "कारोबारी" है जो अपनी फिल्म को बेचने के लिए घर, रिश्ते, महजब, देश से कुछ भी कर गुजरेंगे. इन्हें समाज-दीन-दुनिया के "सरोकार" से कोई लेना देना नहीं.
शाहरुख़ की हाल की फिल्मों को देखकर तो यही सही लगता है कि वह भी अपने महजब को बाज़ार में बेचकर धंधा कर रहा है, उसकी फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर सफलता बताती है, की धंधा बखूबी चल रहा है.

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