Saturday, February 4, 2017

Padmini_No fiction but a historical fact_आख्यान या इतिहास: रानी पद्मिनी का सच!

दैनिक जागरण, 04022017




सन् 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा सुलतान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करके दिल्ली की गद्दी को हड़प लिया। दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत के लिए मेवाड़ के रूप में एक हिंदू शक्ति का होना एक चुनौती था। इसी हिंदू चुनौती को समाप्त करने के इरादे से खिलजी ने अगस्त 1303 ईस्वी में चित्तौड़ पर हमला किया।


इस हमले के दौरान अमीर खुसरो भी खिलजी के था। दिल्ली दरबार में हिंद के तोते के रूप में मशहूर खुसरो ने तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं को "खजाइन-उल-फतूह" में लिखा। यह"तारीख-ए-अलाई" के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस पुस्तक के अनुसार, जब दिल्ली के सुलतान ने चित्तौड़ किले का घेरकर किले को तोड़ने का प्रयास किया। इस भयंकर युद्ध में राणा रत्नसिंह सहित अनेक राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। जेम्स टाड की पुस्तक "एनल्स एण्ड एण्टिक्किटीज ऑफ राजस्थान" के अनुसार, रत्नसिंह की रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हिन्दू ललनाओं ने जौहर किया। अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को तो अधीन कर लिया पर जिस पद्मिनी के लिए उसने इतना संहार किया था, उसकी तो चिता की अग्नि ही उसके नजर आई।


कुछ आधुनिक इतिहासकारों ने इस कहानी को अनैतिहासिक कहकर अनेक कारणों से अस्वीकार किया है। पहला, अमीर खुसरो ने इस विषय में कुछ नहीं लिखा है। दूसरा, अन्य तत्कालीन लेखकों ने भी इसका उल्लेख नहीं किया है। कहानी मलिक मुहम्मद जायसी की लिखी हुई है, जिसने अपना "पद्मावत" 1540 में लिखा और सभी परवर्ती लेखकों ने उसी का अनुसरण किया।

ये तर्क अमीर खुसरो के ग्रंथों के उथले अध्ययन पर अवलम्बित है और युक्तिसंगत नहीं है। अमीर खुसरो अवश्य इस घटना की ओर संकेत करता है जबकि वह अलाउद्दीन की सुलेमान से तुलना करता है, सैबा को चित्तौड़ के किले के भीतर बताता है और अपनी उपमा उस 'हुद-हुद' पक्षी से देता है, जिसने यूथोपिया के राजा सुलेमान को सैबा की सुन्दर रानी विकालिस का समाचार दिया था।

खुसरो के वृतान्त से स्पष्ट है कि चित्तौड़ के किले पर अधिकार करने से पहले अलाउद्दीन उसके यानी खुसरो के साथ एक बार उसके भीतर अवश्य गया था-उस किले में, जिसके भीतर पक्षी भी उड़कर नहीं जा सकते थे। राणा जब अलाउद्दीन के खेमे में आया और उसने तभी समर्पण किया जब सुलतान किले के भीतर से वापस लौटा। राणा के हथियार डाल देने के उपरांत निराश अलाउद्दीन की आज्ञानुसार 30,000 राजपूतों का वध किया गया था।


उपयुक्त वृतांत की उचित समीक्षा करने से कहानी की मुख्य घटनाएं स्पष्ट हो जाती है। खुसरो दरबारी कवि था इसलिए उसने जो कुछ लिखा है, उससे अधिक लिखना उसके लिए संभव नहीं था। खुसरो ने अनेक अप्रिय घटनाओं जैसे दिल्ली में जलालुद्दीन के वध, मंगोलों के हाथों सुलतान की पराजय का उल्लेख नहीं किया है। इतिहासकार गौरीनाथ ओझा, के.एस. लाल और दूसरे लेखकों का यह कथन कि यह कहानी केवल जायसी की मनगढ़न्त थी, गलत है। सत्य तो यह है कि जायसी ने प्रेम काव्य की रचना की और उसका कथानक खुसरो के "खजाइन-उल-फतूह" से लिया था।



No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...