25022017_दैनिक जागरण
दिल्ली का इतिहास, शहर की तरह की रोचक है। इस शहर के इतिहास का सिरा महाभारत तक जाता है, जिसके अनुसार,पांडवों ने इंद्रप्रस्थ बसाया था। दिल्ली का सफर लालकोट,किला राय पिथौरा, सिरी, जहांपनाह, तुगलकाबाद, फिरोजाबाद,दीनपनाह, शाहजहांनाबाद से होकर नई दिल्ली तक जारी है।
रायसीना की पहाड़ी पर बने राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े होकर बारस्ता इंडिया गेट नजर आने वाला पुराना किला,वर्तमान से स्मृति को जोड़ता है। यहां से शहर देखने से दिमाग में कुछ बिम्ब उभरते हैं जैसे महाकाव्य का शहर,दूसरा सुल्तानों का शहर, तीसरा शाहजहांनाबाद और चौथा नई दिल्ली से आज की दिल्ली। इंद्रप्रस्थ की पहचान टीले पर खड़े16वीं शताब्दी के किले और दीनपनाह से होती है, जिसे अब पुराना किला के नाम से जाना जाता है।
दूसरे अदृश्य शहर के अवशेष आज की आधुनिक नई दिल्ली के फास्ट ट्रैक और बीआरटी कारिडोर पर चहुंओर बिखरे हुए मिलते हैं। महरौली, चिराग, हौजखास, अधचिनी, कोटला मुबारकपुर और खिरकी शहर के बीते हुए दौर की निशानी है।
तोमर राजपूतों के दौर में ही पहली दिल्ली (12 वीं सदी) का लालकोट बना जबकि पृथ्वीराज चौहान ने शहर को किले से आगे बढ़ाया। जबकि कुतबुद्दीन ऐबक ने 12वीं सदी में कुतुबमीनार की आधारशिला रखी जो भारत का सबसे ऊंचा बुर्ज (72.5 मीटर) है।
अलाउद्दीन खिलजी के सीरी शहर के भग्न अवशेष हौजखास के इलाके में दिखते हैं जबकि गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के तीसरे किले बंद नगर तुगलकाबाद का निर्माण किया जो कि एक महानगर के बजाय एक गढ़ के रूप में बनाया गया था। फिरोजशाह टोपरा और मेरठ से अशोक के दो उत्कीर्ण किए गए स्तम्भ दिल्ली ले आया और उसमें से एक को अपनी राजधानी और दूसरे को रिज में लगवाया।
सैययदों और लोदी राजवंशों ने करीब सन् 1433 से करीब एक शताब्दी तक दिल्ली पर राज किया। उन्होंने कोई नया शहर तो नहीं बसाया पर फिर भी उनके समय में बने अनेक मकबरों और मस्जिदों से मौजूदा शहरी परिदृश्य को बदल दिया। आज के प्रसिद्व लोदी गार्डन में सैय्यद-लोदी कालीन इमारतें इस बात की गवाह है।
1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को बेदखल करके एक और दिल्ली यानि शेरगढ़ की स्थापना की। आज चिडि़याघर के नजदीक स्थित पुराना किला में शेरगढ़ के अवशेष दिखते हैं।
हुमायूं के दोबारा गद्दी पर बैठने के बाद दिल्ली के छठें शहर, दीनापनाह से शासन किया। निजामुद्दीन औलिया की दरगाह, हुमायूं का मकबरा और खान ए खाना मकबरा, ये सभी इमारतें मुग़ल-पूर्व दिल्ली की निशानी है।
शाहजहां ने 1638 में सातवीं दिल्ली शाहजहांनाबाद की आधारशिला रखी। 1639 में बनना शुरू हुआ लालकिला नौ साल में पूरा हुआ। लालकिले की प्राचीर से ही आजादी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपना भाषण दिया था।
जब अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति के बाद दिल्ली पर दोबारा कब्जा किया। उन्होंने पुरानी दिल्ली की इमारतों को नेस्तानाबूद करते हुए सैनिक बैरकें बना दी। इसी तरह, शहर में रेलवे लाइन के आगमन (1867) के साथ पुरानी दिल्ली के बागों पर स्टेशन सहित दूसरी इमारतें खड़ी की गई और शाहजहांनाबाद का स्थापत्य-रूप एक इतिहास हो गया।
1911 में भारत की अंग्रेजी हुकूमत ने दिल्ली को राजधानी बनने का फैसला लिया और उत्तरी दिल्ली में अस्थायी राजधानी बनी। उसी जगह वाइसराय लाज, जहां अब दिल्ली विश्वविद्यालय है, के साथ अस्पताल, शैक्षिक संस्थान, स्मारक, अदालत और पुलिस मुख्यालय बनें। एक तरह से, अंग्रेजों की सिविल लाइंस को मौजूदा दिल्ली के भीतर आठवां शहर था।
एडवर्ड लुटियंस के नेतृत्व में नई दिल्ली के निर्माण का कार्य1913 में शुरू हुआ, इसके लिए नई दिल्ली योजना समिति का गठन किया गया।
13 फरवरी 1931 को तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने नई दिल्ली का औपचारिक उद्घाटन किया। यह नियोजित राजधानी शाही सरकारी इमारतों, चौड़े-चौड़े रास्तों और आलीशान बंगलों के साथ एक स्मारक की महत्वाकांक्षा के रूप में बनाई गई थी।
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