Saturday, July 29, 2017

18th century Bands of Delhi_कभी बांधों का घर थी दिल्ली






































































18 वीं शताब्दी में दिल्ली जिले के सभी भागों खासकर पहाड़ियों के नीचे या उसके पास के क्षेत्र में पानी के बांधों से सिंचाई एक प्रमुख विशेषता थी। सिंचाई का यह तरीका बारिश के पानी को एक स्थान पर संचित करने के सिद्धांत पर आधारित था। इससे स्थायी रूप से नमी पैदा होती या खेती वाले क्षेत्र को पानी उपलब्ध हो जाता था।


आज इस बात से सबको अचरज होगा कि उस दौर में दिल्ली में अंबरबाई, बिजवासन, महिपालपुर, मनकपुर, नारायणा, पालम और रजोकरी में बांध बने हुए थे। अंग्रेजों के जमाने में प्रकाशित (1884) "ए गजट ऑफ दिल्ली 1883-84" में इस बात का विशद् वर्णन मिलता है।

नजफगढ़ झील के प्रभारी ई॰ बैटी की वर्ष 1848 में लिखित एक रिपोर्ट में दो बड़े पहाड़ी बांधों-छतरपुर और खिरकी की एक मनोरंजक वर्णन है। इस रिपोर्ट में दूसरे बांधों का भी उल्लेख है, जिसे स्थानीय परिवेश से भली भांति परिचित व्यक्ति ही पहचान सकता है क्योंकि उनमें से अधिकांश खंडहर बन चुके हैं। इतना ही नहीं वे दूर दराज के क्षेत्रों में खोह-कंदराओं सहित ढलान वाली दुर्गम पहाड़ियों में फैले हुए हैं। कुछ की हालत इतनी खराब है कि उनकी मरम्मत नहीं हो सकती, कुछ इस लायक नहीं है लेकिन उनमें से कुछ को ठीक किया जा सकता है। अगर इनके प्रति उदासीनता के कारण आई खामियों को दूर कर दिया जाए तो अभी भी शानदार हालत वाले ये बांध उपयोगी और लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।

अंग्रेजों के आगरा नहर के निर्माण के कारण दिल्ली क्षेत्र के मिट्टी के दो बड़े बांधों में से एक तिलपत को काफी क्षति पहुंची क्योंकि यह बांध के जल प्रवाह क्षेत्र का एक हिस्सा इसके बीच में पड़ता था। इसके अलावा तब की दिल्ली के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में पहाड़ी बांध थे। इतना ही नहीं, "सेंटलमेंट रिपोर्ट" में भी नजफगढ़ झील और उसके जल निकासी क्षेत्र का वर्णन है।

1884 का गजट में लिखा है कि दिल्ली में अंबरबाई में एक बांध था, जिससे करीब 215 एकड़ क्षेत्र में सिंचाई होती थी। यह बांध इतना टूटा हुआ था कि इसकी मरम्मत संभव नहीं थी। जबकि बिजवासन बांध के क्षतिग्रस्त होने के बावजूद लगभग 300 एकड़ भूमि की सिंचाई होती थी। इसी तरह, महिपालपुर का बांध, एक बेहतरीन चिनाई वाला बांध था। लेकिन क्षतिग्रस्त होने के कारण उपेक्षित था। गजट के अनुसार, अगर इसकी अच्छी से देखभाल और संरक्षण हो तो इससे करीब 200 एकड़ जमीन की सिंचाई संभव है। मनकपुर का बांध एक आला दर्जे का बांध था जो कि बीच में से क्षतिग्रस्त हो गया था। इसके बावजूद यह करीब 100 एकड़ जमीन की सिंचाई की क्षमता रखता था।

वहीं नारायणा में मिट्टी का एक कच्चा बांध था। वर्ष 1861 में बनाया गया यह बांध वर्ष 1875 में टूट गया था। इसी तरह पालम में एक बड़ा टूटा हुआ बांध था। गजट लिखता है कि अगर इस बांध को पहाड़ियों की तरफ बनाए जाए तो उनकी ऊंचाई अधिक और मौजूदा स्थिति के मुकाबले उनका झुकाव पूर्व की तरफ ज्यादा होना चाहिए। जबकि रजोकरी बांध एक प्राचीन पर बहुत ही मजबूत चिनाई वाला बांध था जो कि आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त था। यही कारण था कि मरम्मत के लिए मुश्किल इस बांध में गहरी खाईयां बन गईं।










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