दिल्ली घराना सारंगी वादकों या गायकों का घराना है। सितार पर वह गाने का अनुसरण करते हैं। इस घराने के प्रवर्तक तानरस खां माने जाते हैं। मुगल बादशाहों के पतन के बाद तानरस खां ने इस घराने को स्थापित किया। इस घराने का संबंध सदारंग और अदारंग से भी माना जाता है। इस घराने को बाद में तानरस खां के पुत्र उमराव खां ने चलाया। इस घराने की विशेषताएं हैं-ख्यालों की कलापूर्ण बंदिशें, तानों का निराला ढंग और द्रुतलय में बोल तानों का प्रयोग।
वंश परम्परागत व्यवसाय में दक्ष तथा कला की वंशानुगत शिक्षा में पारंगत होने के कारण घराना और शैली के विकास में सहायक रहा है। कालान्तर में घराना शब्दों संगीतज्ञों की कलाभिव्यक्ति की विशिष्ट शैली में अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।
दिल्ली-घराना, जो कव्वाल बच्चों का घराना कहलाता है, के उस्ताद चांद खां का मत है कि ख्याल गायकी पहले इन्द्रप्रस्थ पद्धति या इल्म खुसरो के नाम से जानी जाती थी।
अब तक तबला के मुख्य छह घराने हो चुके हैं जिन्हें दिल्ली, पंजाब, अजराड़ा, लखनऊ, फर्रूखाबाद तथा बनारस घराना के नाम से जाना जाता है। दिल्ली घराने की शैली को बाज या चांटी बाज और दो-अंगुली भी कहा जाता है। इस घर में पेशकार, कायदा और रेला का अधिकता है। इसकी अधिकांश रचनाएं चतुरस जाति में हैं।
सिदार खान दाढ़ी को दिल्ली घराने का संस्थापक माना जाता है। इस घराने के दूसरे दिग्गजों में सिदार खान के छोटे भाई उस्ताद चांद खान, बगरा खान, घसीट खान और लखनऊ घराने की स्थापना करने वाले कल्लु खान, जिन्होंने बाद में अजरद घराने की स्थापना की, हैं।
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