Saturday, July 8, 2017

Raja Garden without a garden_बिना गार्डन वाला, राजौरी गार्डन

दैनिक जागरण_08072017


सुनने में यह बात भले ही अजीब लगे पर सच यही है कि दिल्ली के राजौरी गार्डन में कभी कोई गार्डन नहीं था। प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड ने अपनी आत्मकथा “लोन फॉक्स डांसिंग” (प्रकाशक:स्पीकिंग टाइगर) ने इस बात को सत्यापित किया है.
उनके ही शब्दों में, “ हम (मेरी मां, सौतेले पिता, भाई और बहन) तब की नई दिल्ली के सबसे दूसरे किनारे यानी नजफगढ़ रोड पर राजौरी गार्डन नामक एक शरणार्थी कॉलोनी में रह रहे थे। यह 1959 का समय था जब राजौरी गार्डन में पश्चिमी पंजाब के हिस्सों, जो कि अब पाकिस्तान है, से उजड़कर आए हिंदू और सिख शरणार्थियों के बनाए छोटे घर भर थे। यह कोई बताने की बात नहीं है कि यहां कोई गार्डन यानी बाग नहीं थे।”
आत्मकथा के अनुसार, हरियाणा और राजस्थान के गर्म-धूल भरी हवाओं से इस पेड़विहीन कॉलोनी की हालत खराब थी। यहां आकर रहने वाले शरणार्थियों को भारत में नए सिरे से जमने, काम शुरू करने या छोटे मोटे धंधों को खड़ा करने में काफी मेहनत करनी पड़ी। ऐसे में, उनके पास फूलों के लिए समय नहीं था और बाहरी लोगों के लिए और भी कम। लेकिन उनमें से कुछ ने अपने घरों के कुछ हिस्सों को किराए पर दे दिया।रस्किन बताते हैं कि कम किराए के उस समय में, मेरे सौतेले पिता ने (राजौरी गार्डन में) तीन कमरे का एक घर किराए पर लिया, जिसमें एक छोटा आंगन और एक हैंडपंप भी था। उस हैंडपंप ने समूचा फर्क पैदा किया क्योंकि दिल्ली में पानी हमेशा से एक समस्या थी (और आज भी है)। हैंडपंप का पानी साफ था, जिसे खाना बनाने, कपड़े धोने-नहाने और उबलाकर पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता था। मुझे पानी या खाने के कारण पेट की परेशानी (किसी दूसरे को ऐसी समस्या नहीं थी) नहीं थी, वह तो सीधे सीधे असंतोष और निराशा थी।



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