नई दिल्ली के कनाट प्लेस के राजीव चौक से कस्तूरबा गांधी रोड से कुछ मिनटों की दूरी पर एक बहुत ही भव्य ऐतिहासिक इमारत और बावड़ी है जहाँ आराम से पैदल ही पहुंचा जा सकता है। बाराखंभा रोड और कस्तूरबा गांधी मार्ग के बीच अतुलग्रोव रोड के साथ बनी यह बावड़ी दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ बावड़ी कही जा सकती है।
यह बावड़ी कस्तूरबा गांधी मार्ग, फिरोजशाह रोड और बाराखंभा के त्रिकोण के बीच बनी रिहायशी और व्यावसायिक बहुमंजिला इमारतों के बीच छिपी हुई है।
इसे उग्रसेन की बावड़ी के नाम से पहचाना जाता है। आधुनिक बहुमंजिला इमारतों के बीच गुम हो गई इस बावड़ी की भव्यता अद्भुत है। वह बात अलग है कि आज इसमें पानी नाम का ही रह गया है। फिर भी इसकी निर्माण कला और जब इसे बनाया गया होगा, तब और आज के निर्माताओं को उपलब्ध तकनीकी जानकारी एवं संसाधनों को सराहे बिना रह ही नहीं सकते।
उग्रसेन की बावड़ी जमीन के स्तर पर 192 फीट लंबी और 45 फीट चौड़ी है। पानी के स्तर तक उतरने के बाद इसकी चैड़ाई घटकर 129 फीट लंबी और साढे 24 फीट चौड़ी रह जाती है। उत्तरी छोर पर इस बावड़ी पर साढ़े 33 फीट चौड़ी छत बनी हुई है। इसका इस्तेमाल बैठने के लिए किया जा सकता है। इस बावड़ी और कुंए को बनाने के लिए चूना मिट्टी और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।
शायद इस बावली के प्रवेश संबंधी संरचनाओं के कुछ भाग नष्ट हो गए हैं। इस बावली की वास्तुकला संबंधी विशेषताएं बाद के तुगलक या लोदी काल की ओर संकेत करती है। हालांकि परम्परा के अनुसार यह कहा जा सकता है कि इसे राजा अग्रसेन ने बनवाया था जिन्हें अग्रवाल जाति का पूर्वज समझा जाता है। अपने गहरे पानी के कारण यह बावली ग्रीष्म ऋतु में एक तरणताल का काम देती है।
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