पुराने किले की बावड़ी
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आज जब दिल्ली में नए सिरे से पानी की हरेक बूंद को सहेजने की जरूरत महसूस की जा रही है, ऐसे में पुराने किले के भीतर आज भी एक उपयोग लायक बावड़ी की उपस्थिति एक हैरान कर देने वाली बात है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की पुस्तक “दिल्ली के स्मारक” के अनुसार, कला-ए-कुहना मस्जिद की ओर जाने वाले रास्ते के दक्षिण 22 मीटर गहरी बावड़ी है। इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग समूचे किले में विस्तृत है और वर्षा का पानी संचय करता है। इसमें भूमिगत स्त्रोतों से भी पानी आता होगा। जफर हसन ने भी अपनी किताब में इस बावली का उल्लेख किया है।
दिल्ली क्वार्टजाइट पत्थरों वाली इस बावली में तल तक जाने के लिए 89 सीढ़ियां हैं। इस बावड़ी के उत्तर पूर्वी छोर की ओर कुंआ बना हुआ है। यह बावड़ी इस तरह बनी हुई है कि इसके अंदर बने कुंए में जमीन के अंदर के प्राकृतिक स्त्रोतों के अलावा बरसात के दौरान किले में एकत्र होने वाला पानी भी आ सकता है।
इंटैक की पुस्तक “दिल्ली द बिल्ट हेरिटेजः ए लिस्टिंग” भाग-एक पुस्तक के अनुसार, इस कुंए के पानी का आज भी उपयोग हो रहा है, जिसमें पंप से पानी निकाला जाता है। 1541 में शेरशाह की बनाई पुराने किले की मस्जिद के सामने घोड़े की नाल के आकार वाली मेहराबों सहित पांच दरवाजे हैं। मूलरूप से इसके आंगन में एक उथला तालाब मौजूद था जिसमें एक फव्वारा लगा था।
"नीली दिल्ली प्यासी दिल्ली" पुस्तक के मुताबिक जब इस किले के अंदर लोग रहते थे तो यह बावड़ी काम के लायक नहीं रह गई थी। इसमें कूड़ा और गाद भर गई थी। बाद में इसे साफ किया गया। यह बावड़ी दिल्ली पर शेरशाह सूरी के शासन के दौरान करीब 1540 में बनाई गई मानी जाती है। इस बावड़ी का प्रयोग दिल्ली के दो शहरों की स्थापना करने वाले बादशाहों के राज में किया गया।
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