Tuesday, July 4, 2017

Story of Najafgarh drain turning into a dirty source of water_नजफगढ़ नहर की नाले में बदलने की व्यथा-कथा

सांध्य टाइम्स, 4 जुलाई 2017

दिल्ली की नई पीढ़ी इस बात से अनजान ही है कि राजधानी में यमुना नदी के बाद पानी का सबसे बड़ा जल स्रोत नजफगढ़ झील होती थी। इतना ही नहीं, आज जल प्रदूषण के लिए कुख्यात नजफगढ़ नाला कभी इस झील को नदी से जोड़ने वाला माध्यम था। यह नाला कभी राजस्थान की राजधानी जयपुर के जीतगढ़ से निकलकर अलवर, कोटपुतली से वाया हरियाणा के रेवाड़ी और रोहतक से होते हुए नजफगढ़ झील व वहाँ से राजधानी की यमुना नदी से मिलने वाली साहिबी या रोहिणी नदी हुआ करती थी। इस नदी के माध्यम से नजफगढ़ झील का अतिरिक्त पानी यमुना नदी में मिलता था। इस नदी के जरिए नजफगढ़ झील का अतिरिक्त पानी यमुना में मिल जाया करता था।

आमतौर पर बरसात के दिनों में इस इलाके में ‘साहिबी नदी’ का पानी भर जाया करता था। साहिबी नदी का पानी अलवर से गुड़गांव के रास्ते होकर इस झील तक पहुंचा करता था। बरसात के दिनों में छावला और उसके आस-पास के गाँवों में मीलों दूर तक पानी भरे रहने के दृश्य को देखने वाले लोग आज भी हैं। वे याद करते हैं कि तब बरसात में यह इलाका कितना खूबसूरत और बाद में हरा-भरा दिखा करता था। जैसे-जैसे सर्दी आती थी, इस इलाके में पानी का स्तर कम होता जाता था क्योंकि नजफगढ़ ड्रेन के जरिए बहकर पानी यमुना की ओर निकलता जाता था।

सन् 1912 के आसपास दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ आई व अंग्रेजी हुकूमत ने नजफगढ़ नाले को गहरा कर उससे पानी निकासी की जुगाड़ की। उस दौर में इसे नाला नहीं बल्कि ‘नजफगढ़ लेक एस्केप’ कहा करते थे। जिस साल बारिश कम होती थी, उन सालों को छोड़ दिया जाए तो इस झील से पानी की निकासी के बावजूद बहलोलपुर, दाहरी और जौनापुर गाँवों के दक्षिण में हमेशा झील का पानी भरा रहता था ।

पहले तो नहर के जरिए तेजी से झील खाली होने के बाद निकली जमीन पर लोगों ने खेती करना शुरू की फिर जैसे-जैसे नई दिल्ली का विकास होता गया, खेत की जमीन मकानों के दरिया में बदल गई। इधर आबाद होने वाली कालेानियों व कारखानों का गन्दा पानी नजफगढ़ नाले में मिलने लगा और यह जाकर यमुना में जहर घोलने लगा।

यही से नजफगढ़ झील और प्राकृतिक नहर के नाले में बदलने की व्यथा-कथा शुरू हुई। यह कहना गलत नहीं होगा कि इसे नाला तो दिल्ली के विकास के साथ बना दिया गया है। उसी का नतीजा था कि वर्ष 2005 में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नजफगढ़ नाले को भारत के सबसे अधिक प्रदूषित 12 वेटलैंड में से एक बताया। यहां तक कि हरियाणा की पिछली कांग्रेस सरकार ने तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में एक मुकदमे के दौरान दाखिल किए अपने हलफनामे में नजफगढ़ झील के होने को ही इंकार करते हुए उसे बारिश के अतिरिक्त जल के जमा होने का निचला हिस्सा मात्र बताया। जिस पर न्यायाधीश ने सरकार से ही पूछ लिया था कि यदि यह झील नहीं है तो आखिर झील किसे कहेंगे।

इस झील का विस्तार एक हजार वर्ग किलोमीटर हुआ करता था जो आज गुडगाँव के सेक्टर 107, 108 से लेकर दिल्ली के नए हवाई अड्डे के पास पप्पनकलां तक था। इसमें कई प्राकृतिक नहरें व सरिता थीं, जो दिल्ली की जमीन, आबोहवा और गले को तर रखती थीं। हरियाणा के झज्जर की सीमा से पाँच मील तक नजफगढ़ झील होती थी जो और आठ मील बुपनिया और बहादुरगढ़ तक फैल जाया करती थी। सांपला को तो यह झील अक्सर डुबोये रखती थी, 15 से 30 फुट तक गहरा पानी इस झील में भर जाया करता था। उधर झज्जर के पश्चिम में जहाजगढ़, तलाव, बेरी, ढ़राणा, मसूदपुर तक के पानी का बहाव भी झज्जर की ओर ही होता था। झील को घेर कर बनाए गए उपनगरों में जब पानी की कमी हुई तो धरती का सीना चीर कर पाली उलीछा गया। आखिर उसकी भी सीमा थी, आज नजफगढ़ व गुड़गाँव में ना केवल भूजल पाताल में पहुँच गया है, बल्कि नजफगढ़ नाले का जहर उस पान में लगातार जज्ब हो रहा है।

आज नजफगढ़ नाला यमुना नदी में मिलने से पहले 57.48 किलोमीटर की कुल दूरी में से 30.94 किमी की दूरी दक्षिण पश्चिम जिले में ढासा से लेकर ककरौला तक तय करता है। ढासा से लेकर ककरौला तक, 28 छोटे नाले और ककरौला के बाद लगभग 74 छोटे-बड़े नाले नजफगढ़ नाले में शामिल होते हैं।

दिल्ली में यमुना नदी में मिलने वाले तीन प्रमुख प्राकृतिक जल निकासी बेसिन (नाले) हैं, जिनमें नजफगढ़ बेसिन सबसे बड़ा है। नजफगढ़ नाला दिल्ली में सबसे बड़ा नाला है। यह हरियाणा से दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम भाग में प्रवेश करता है। दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम जिले के अपने प्रारंभिक चरण में यह नाला अपने साथ बाढ़ का पानी, हरियाणा का अपशिष्ट जल और आस-पास के जलग्रहण क्षेत्र का पानी बहाकर लाता है।

सबसे बड़ी वाटर बॉडी नजफगढ़ झील
यह ड्रेन अब बरसाती पानी की निकासी की बजाए शहर की गंदगी को बहाने का माध्यम बन चुका है। यह नाला अपने आस-पास रहने वालों के लिए बीमारियों और सड़ांध का एक प्रमुख कारण है। यमुना को मैली करने का यह सबसे बड़ा कारण है। नजफगढ़ ड्रेन की मार्फत झील का अतिरिक्त पानी बहकर यमुना में जाता था। इस झील में भर जाने वाले बरसाती पानी की निकासी के लिए यह ड्रेन पर्याप्त साबित नहीं हो रहा था। पानी की निकासी की यह व्यवस्था होने के बाद भी इस झील के आस-पास के इलाके में पानी भरा रह जाता था। इसलिए एक सप्लीमेंटरी ड्रेन बनाकर इस पानी की निकासी के प्रबंध किए गए। इस तरह से बरसात के पानी को संरक्षित करके उसका उपयोग करने की बजाए उसे नदी में बहाने के नजरिए से काम किए जाने के बावजूद यह झील आज भी यमुना के बाद दिल्ली की सबसे बड़ी वाटर बॉडी है।

दिल्ली- हरियाणा सीमा पर धुर तक फैली नजफगढ़ झील राजधानी का सबसे बड़ा ‘लो लाइंग एरिया’ है। तश्तरी की तरह दिखने वाली यह झील 900 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके में फैली हुई थी। इसका अधिकतर हिस्सा दिल्ली में नजफगढ़ और हरियाणा में गुड़गांव तक फैला हुआ था। गुड़गांव जिले के तालाबों का अतिरिक्त पानी भी इस झील में पहुंच जाया करता था। झील की सामान्य जल से पूर्ण सतह समुद्र-तल से 690 फीट की ऊंचाई पर थी। जब जल सतह तक जमा हो जाता है तो लगभग 7,500 एकड़ में पानी भर जाता था।



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