Saturday, June 23, 2012

Daag Dehlvi

आरजू है वफ़ा करे कोई जी न चाहे तो क्या करे कोई
मिर्जा खान उर्फ " दाग देहलवी " की पैदाइश दिल्ली के चांदनी चौक इलाके के एक मौहल्ले मे हुई थी । दाग देहलवी की माँ छोटी बेगम बहुत खूबसूरत थीं, व लोहारू के नवाब शम्सुद्दीन की रखैल के तौर पर रहतीं थीं । देहलवी के वालिद शम्सुद्दीन को जब फांसी दी गई तब उनकी उम्र 6 साल की थी । फिर देहलवी की माँ ने किले के युवराज शहजादा फखरुद्दीन की पनहा ली और आप की परवरिश किले के शाही माहौल मे होने लगी । देहलवी ने उस्ताद जौंक से शायरी मे फैज़ पाया । देहलवी ने तक़रीबन दस साल की उमर से ही शायरी मे हाथ आजमाना शुरू कर दिया था । आपके दादा बादशाह बहादुर शाह ज़फर भी एक माने हुए शायर थे । दस जुलाई १८५६ को ज़हर के असर से आपके सौतेले पिता की भी मौत हो गई और फिर आप रामपुर चले गए जहाँ आप की खाला रहा करतीं थीं । १८८८ मे हैदराबाद के निज़ाम के बुलावे पर आप हैदराबाद चले गए फिर ताउम्र आप वहीँ रहे व १९०५ मे हैदराबाद मैं ही आपने इस दुनिया से रुखसती ली ।
ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया
[दाग देहलवी (25.05.1831-14.02.1905)]

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