हमने अपना महान् उपन्यासकार की स्मृति में क्या किया ? जंगलों में छिपा गढ़ कुंडार धीरे-धीरे खण्डहर होता जा रहा है। उन स्थानों की कभी खोज खबर ही नहीं ली गयी जिन पर उन्होंने उपन्यास लिखे।
कितने सादे, कितने आडम्बरहीन, कितने सहज हुआ करते थे हमारे साहित्य के ये महान् लोग। उनकी स्मृति को शत्-शत् प्रणाम।
—धर्मवीर भारती
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