Thursday, June 21, 2012

मीर तकी मीर

इश्क ही इश्क है जहां देखो
सारे आलम में भर रहा है इश्क
इश्क माशूक इश्क आशिक है
यानी अपना ही मुब्तला है इश्क
कौन मकसद को इश्क बिन पहुंचा
आरजू इश्क वा मुद्दआ है इश्क
दर्द ही खुद है खुद दवा है इश्क
शेख क्या जाने तू कि क्या है इश्क
तू ना होवे तो नज्म-ए-कुल उठ जाए
सच्चे हैं शायरां खुदा है इश्क
मीर तकी मीर (1723-1810) का जन्म आगरा के करीब एक गांव में हुआ था। बाद में वे दिल्ली चले आए। अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली में जो कोहराम मचाया था, मीर उसके चश्मदीद गवाह थे।
उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘जिक्र-ए-मीर’ में इसका वर्णन भी किया है। उनके जीवन के अंतिम वर्ष लखनऊ में गुजरे, जहां मुफलिसी में उनकी मौत हुई। मीर ने प्रेम पर बहुत खूबसूरत शायरी लिखी है।

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