प्रगतिशीलता का ढोंग और महिला अधिकार और सम्मान का चोला उतर गया है और उसके भीतर का क्रूर स्वरुप संसार के सामने है। प्रतिक्रियावादी होकर प्रगतिशीलता का ढोंग कब तक चलेगा ?
औरत भी एक इंसान है न कि भोग कि वस्तु और जब रिश्तों के महत्व को समझेंगे, तभी पता चलेगा कि आपसी व्यवहार स्वाभाविक रूप से अनेक रिश्तों को जन्म देता है और ऐसे में हमारा व्यवहार भी उसी के अनुकूल होने की अपेक्षा होती है। हम जिसे जानते भी नहीं हैं उस बच्ची के अंकल, चाचा, ताऊ, मामा, भैया और बड़े बन जाते हैं जो खून के रिश्तों से भी ज्यादा विश्वसनीय हो जाते है ।
पर आज अनेक प्रगतिशील हकला रहे हैं, गूंगे बनकर एकांतवास में चले गए हैं क्योकि उन्हें लगता है कि आरोप के घेरे में उनके कुनबे का आदमी है ! आखिर यही कहा जा सकता है किसमर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।”
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