Thursday, November 21, 2013

Privacy Matters

सरकार की जासूसी/निगरानी

देश की करीब एक दर्जन जांच एजेंसियों को अलग अलग कारणों से आम लोगों की निगरानी करने का अधिकार है. उन्हें विभिन्न कानून जिनमें मुख्य तौर पर टेलीग्राफ एक्ट, 1885 और सूचना प्रोद्यौगिकी एक्ट, 2008 के तहत इलेक्ट्रानिक निगरानी करने का भी अधिकार है.
इन एजेंसियों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और खुफ़िया जांच एजेंसी (आईबी) के अलावा इकॉनामिक आईबी, राजस्व निदेशालय, डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी शामिल है. इनके अलावा राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संस्थान (एनटीआरओ) पर भी अन्य विभागों के साथ लोगों की निगरानी करने का आरोप लगता रहा है.
इन विभागों को इंडियन टेलीग्राफ़ी एक्ट, 1985, इंडियन टेलीग्राफ़ नियम, 1951, सूचना प्रोद्यौगिकी कानून, 2000 और सूचना प्रोद्यौगिकी नियम 2009 के तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का अधिकार मिला हुआ है. ये कानून फिलहाल आधे-अधूरे हैं और भारतीय संविधान के तहत लोगों को मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान नहीं करते हैं.
सीधे तौर पर सवाल ये उठता है कि क्या किसी भी लोकतांत्रिक देश में किसी नागरिक की इस तरह जासूसी होनी चाहिए ?
भारत की सर्वोच्च अदालत ने साल 1996 में दिए अपने एक आदेश में इंडियन टेलीग्राफी एक्ट के तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को मान्य बताया लेकिन कहा कि टेलीफ़ोन टैपिंग से संविधान के तहत मिले जीवन के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है.
सरकार की ओर से हाल के सालों में गूगल के ज़रिए निजी जानकारियां जुटाने और इंटरनेट से जानकारियां हटाने के मामले में भारत अमरीका के बाद दूसरे नंबर पर रहा है.

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