राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे खंगालते हुए हमने अपने पाठकों के लिए तलाशी पुस्तकें जो विशुद्ध रूप से आन्तरिक सुरक्षा के ही विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करती हैं। संयोग या विडम्बना, राष्ट्रहित के इस अति महत्वपूर्ण पक्ष पर ज्यादातर कलम सिर्फ अंग्रेजी में ही चली परन्तु ज्ञान भाषा का गुलाम नहीं और प्रसार से बढ़ता ही है इसलिए जहां मिले, जिस भाषा में मिले इसका स्वागत कीजिए।
सन् 1947 से लेकर आज तक का भारत का आधुनिक राष्ट्र-राज्य का सफल पर एक नजर डालने से पता चलता है कि देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष आने वाली आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना ही कर रहा है। एक ओर जहां, बहुआयामी चुनौतियों रही है तो वहीं उसकी तुलना में हमारी प्रतिक्रिया लगातार सीमित रही है। अगर केंद्रीय गृह मंत्रालय की ताजा वार्षिक रिपोर्ट को एक आधार मानें तो पाकिस्तानी घुसपैठ और उसके कारण कश्मीर घाटी में आतंकवादी गतिविधियां, देश के भीतरी क्षेत्रों में आतंकवाद, नक्सलवादी (वामपंथी उग्रवाद) समूहों की हिंसा और निर्दोषों की हत्याएं, देश में सांप्रदायिक स्थिति, पूर्वोत्तर के आठ राज्यों-असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, मेघालय और सिक्किम-में सुरक्षा की स्थिति आज मुख्य रूप से सतत चुनौती बनी हुई है।
हाल के समय में देश की आंतरिक समस्या के विषय पर छपी पुस्तकों में से कुछ प्रमुख पुस्तकों में इंडियास इंटरनल सिक्यूरिटी एट जेओपार्डी नक्सलाइट्स एंड अधर टेररिस्ट: पूरन चन्द्र, थ्रेट्स टू इंडियास इंटरनल सिक्योरिटी इश्यूज एंड चैलेंजेज, संजय कुमार, अनुराग जायसवाल, इंडियास क्वेस्ट फॉर इंटरनल सिक्यूरिटी: समरवीर सिंह, बृज किशोर प्रसाद, वेरोनिका डी़ हनांर्डेज गुजमैन, टेरर एंड कन्टेनमेंट रू पर्सपेक्टिव्स ऑफ इंडियास इंटरनल सिक्यूरिटी: के पी एस गिल, सोनल सिंह, भाबनी कराना, इंडियास इंटरनल सिक्यूरिटी द एक्चुअल कंसर्न्स: एन सी अस्थाना, माओइस्ट इन्सजेंर्सी एंड इंडियास इंटरनल सिक्यूरिटी आर्किटेक्चर: ई़ एन राममोहन, अमृत पाल सिंह और ए़के़ अग्रवाल, सिक्यूरिटी डेफिसिट कमप्रीहेन्सिव इंटरनल सिक्यूरिटी स्ट्रेटेजी फर इंडिया: एन मनोहरन, सारा जे पिट, गुन, थ्रेट्स टू इंडियास इंटरनल सिक्यूरिटी नीड फर ए न्यू स्ट्रेटेजी: अर्चना शर्मा, मनीषा वी. कुलकर्णी, निकोल मुलर, इंडियास नेशनल सिक्यूरिटीरू एनवल रिव्यू 2009: सतीश कुमार, सिक्यूरिटी इन ए काम्प्लेक्स एंड इमजिंर्ग चैलेंजेज फेसिंग इंडिया: नील पादुकोण, एवेरीमैंस वर स्ट्रेटेजी, सिक्यूरिटी एंड टेररिज्म: रघु रमन, सिक्योरिटी डेफिसिट कम्प्रीहेंसिव इंटरनल सिक्योरिटी स्ट्रेटिजी फर इंडिया: एन मनोहरन और रेज, रेकसिलेशन, सिक्यूरिटी मैनेजिंग इंडियास डाइवरसिटीज: बी जी वर्गीज रही है ।
इन पुस्तकों के शीर्षक और विषय वस्तु के अध्ययन से कुछ तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आते हैं । देश की सुरक्षा को बाहरी चुनौतियां चीन और पाकिस्तान से है जबकि आंतरिक चुनौतियां जेहादी और अलगाववादी हिंसा से है । भारतीय समाज, एक खुला समाज है इसलिए हमें आंतरिक सुरक्षा के सभी मामलों को गंभीरता से लेने की जरूरत है क्योंकि आज भारत सुरक्षित है लेकिन यहां के नागरिक असुरक्षित हैं।
भारत को अपने यहां फैले आतंकवाद के खात्मे के लिए इस्ररायल की तरह सक्रिय समाप्त करना चाहता है तो उसे पाकिस्तान में शरण पाए दाऊद इब्राहिम जैसे भगोड़े और हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों सहित देश-विदेश में सक्रिय कट्टरपंथी आतंकवादी संगठनों और उनके गुर्गों को खत्म करने के लिए कार्रवाई करनी होगी। आतंकवादियों के विरुद्व योजनाबद्व तरीके से सही मौके पर गोपनीय कार्रवाई करने की जरूरत है। इन कट्टरपंथी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने की जानी चाहिए, जो भारत के खिलाफ हमले का षड्यंत्र करते हैं। योजना आयोग के समान एक सुरक्षा आयोग के गठन की आवश्यकता के साथ ही देश के सभी शहरों में आधुनिक पुलिस कक्ष होने और सभी पुलिस थानों के आपस में जोड़ने की जरूरत है। मुंबई हमले के छह साल बाद भी लश्कर-ए-तैयबा पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है और भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का पसंदीदा औजार बना हुआ है। आईएसआई ने लश्कर की हिमायत जारी रखी है जो कि भारत के लिए खतरनाक है। लश्कर-ए-तैयबा जमात-उद-दावा की सशस्त्र शाखा है, जिसके पास पांच लाख से ज्यादा हथियारबंद और प्रशिक्षित सदस्य हैं। यह आज दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी समूह है।
यह एक खुला सच है कि नेपाल में राजशाही के खिलाफ माओवादी संघर्ष को आरंभ से ही चीन का परोक्ष समर्थन प्राप्त था और अब माओवादी दल के सत्ता में भागीदार होने के बाद चीन भारत के खिलाफ अपने मकसद को साधने में कोई कसर छोड़ रहा होगा ऐसा मानना मूर्खता से अधिक कुछ नहीं। दूसरी ओर, पाकिस्तान भी इन्हीं माओवादी तत्वों के सहारे अपनी आतंकवादी गतिविधियों को नेपाल के सीमावर्ती भारतीय क्षेत्रों में बढ़ाने में प्रयासरत रहा है और भारी संख्या में उग्रवादियों के लिए गोला बारूद और विस्फोटक सामग्री नेपाल के रास्ते भारत भेजी जाती रही हैं। आखिर कंधार में भारतीय विमान के अपहरण में भी काठमांडू की भूमिका महत्वपूर्ण थी। नक्सलवाद पहले से ही देश के लिए एक आंतरिक संकट बना हुआ है और ऐसे में नेपाल सीमा से इन संगठनों को मदद निश्चित रूप से आंतरिक सुरक्षा के लिए एक चुनौती है जिसके लिए सरकार को गंभीर होने की जरूरत है। नेपाल की लगभग पांच सौ किलीमीटर की सीमा की निगरानी की कारगर व्यवस्था के लिए भी आंतरिक सुरक्षा नीतियों सहित बाह्य सुरक्षा नीतियों को पुख्ता करने पर समय रहते ठोस कदम उठाये जाने चाहिए। नेपाल के आंतरिक राजनीति में बढते माओवादी हस्तक्षेप को मद्देनजर रखते हुए भारत को नेपाल-भारत सीमा की गंभीरता को समझना अत्यंत जरूरी है वरना नेपाल सीमा के प्रति नरम रुख देश के आंतरिक सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं।
आज देश के एक बहुत बड़े क्षेत्र में जंगलों तथा पहाडि़यों में माओवादी या नक्सली भयंकर उत्पात कर रहे हैं तथा पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिसा में आतंकवाद का वातावरण उत्पन्न किए हुए हैं। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी उनकी गतिविधियाँ समाप्त नहीं हुई हैं। पशुपति से लेकर तिरूपति तक लाल गलियारा कायम हो गया है । अब तो नक्सली महानगरों में भी घुसपैठ करने की कोशिश कर रहे हैं। ये नक्सली प्रचार की दृष्टि से, सहयोगियों से संपर्क के लिए अथवा हथियार प्राप्त करने के लिए और मानवाधिकारों के नाम पर कुछ बुद्घिवादियों से, जो उनसे सहानुभूति रखते हैं, से संपर्क बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश में रहते हैं कि किस तरह देश की आंतरिक सुरक्षा में तैनात केंद्रीय और सैन्य बलों को हतोत्साहित किया जाए। इस कुत्सित खेल में नक्सलवादी अकेले नहीं हैं, जम्मू और कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से लेकर कामरूप तक राष्ट्र विरोधी तत्वों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का वरदहस्त है जो कि भारत की शांति और अर्थव्यवस्था को नकली नोटों से कमजोर करने में लगी हुई है। हर साल कई सौ करोड़ का नकली नोट पाकिस्तान से छपकर बंगलादेश और नेपाल के जरिए देश में आ रहे हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला किया जा रहा है। आज देश के अनेक भागों, विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों में चल रहे हिंसक आंदोलन से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। आज चीन ने सिक्किम के प्रति अपना रवैया नरम किया है लेकिन अरुणाचल प्रदेश पर आज भी चीन अपना हक जताता है यह चिंता का विषय है।
कभी चीन भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करके अपने तंबू गाड़ लेता है तो कभी पाकिस्तानी सेना भाड़े के टटुओं को भेष बदकर भारतीय जवानों का सिर काट ले जाती है। कभी बंगलादेशी घुसपैठ में इजाफा होता है तो कभी श्रीलंका से नीतिगत मतभेद उभरकर सामने आते हैं। कुल मिलाकर देश अपने पड़ोसी देशों की कूटनीतियों और षड्यंत्रों के चक्रव्यूह में उलझ रहा है। इस पर भी परेशानी का कारण हमारे नेताओं के अपनी उत्तरदायित्वों और जिम्मेदारियों को किनारे पर रखकर सैन्य जवानों की शहीदी पर भी शर्मनाक सार्वजनिक बयान हैं। ये सब बातें, देश की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं हैं और भविष्य में अत्यंत नुकसानदेह साबित होंगी।
सबसे हैरानी की बात यह है कि भारत की आन्तरिक और बाहरी सुरक्षा दोनों पर ही खतरे के बादल हैं और राजनीतिक दल अपनी संकीर्ण सोच तथा कथित वैचारिक रतौंधी के कारण समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की अवसरवादी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। देश में जब भी आतंकवादी घटनाएं होती हैं, सत्तारूढ़ दल आतंकवाद को नियंत्रित करने के नाम पर कभी पोटा लागू करके हटाते हैं तो कभी एनसीटीसी (राष्ट्रीय आतंक रोधी केंद्र) के मामले पर नूराकुश्ती करते हैं। इस वजह से अब तो आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ बाहरी सुरक्षा पर भी सवालिया निशान खड़े होने लगे हैं।
आज के फेसबुक और ट्विटर के दौर में साइबर दुनिया में घृणित और हिंसक संदेशों के जरिए साइबर आतंकवाद ने देश की सुरक्षा के लिए एक नयी चुनौती खड़ी कर दी है। देश की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रॉ ने सोशल नेटवकिंर्ग मीडिया और साइबर संसार के माध्यम से सांप्रदायिकता और आतंकवाद को फैलाने को आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा माना हैं। एक तरह से, साइबर आतंकवाद एक नई समस्या है और पूरे सुरक्षा तंत्र के सामने इससे मुकाबला करने की चुनौती है।
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