सवाद ए-रौमत-उल-कुबरा में दिल्ली याद आती हैवही इबरत वही अज्मत वही शान-ए-दिल-आवेजी-मोहम्मद इकबालजिस राह से वो दिल-जदा दिल्ली से निकलतासाथ उस के कयामत का सा हंगामा रवां था-मीर तकी मीरखंदा-जन है गुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज परआह तू उजड़ी हुई दिल्ली में आरामीदा है-मोहम्मद इकबालशिकवा-ए-आबला अभी से ’मीर’है प्यारे हनूज दिल्ली दूर-मीर तकी मीरहै अब इस मामूरे में कहत-ए-गम-ए-उल्फत ’असद’हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या-मिर्जा गालिबदिल की बस्ती पुरानी दिल्ली हैजो भी गुजरा है उस ने लूटा है-बशीर बद्रइन दिनों गरचे दकन में है बड़ी कद्र-ए-सुखनकौन जाए ’जौक’ पर दिल्ली की गलयां छोड़ कर-जौक शेख इब्राहीम’अमीर’ ओ दाग तक ये इम्तियाज ओ फर्क था ’अहसन’कहां अब लखन्ऊ वाले कहां अब दिल्ली वाले हैं-अहसन मारहरवीमोमिन ये लाफ-ए-उल्फत-ए-तक्वा है क्यूं मगरदिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमां नहीं रहा-मोमिन खान मोमिनदिल्ली कहां गई तिरे कूचों की रौनकेंगलियों से सर झुका के गुजरने लगा हूं मैं-जां निसार अख्तर
Friday, January 10, 2014
Delhi in Urdu (उर्दू में दिल्ली)
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