व्यक्ति की आदिम इच्छाओं का प्रकटीकरण तो अनुकूल परिस्थितियों में ही होता है, विपरीत स्थितियों में तो स्वयं को बचाएं रखने की कोशिश ही सर्वोपरि होती है.आखिर शांति काल में ही तो जीवन विस्तार पाता है, युद्ध में तो मृत्यु की काली छाया ही चहुँओर घूमती है.युद्ध क्षेत्र और शांति काल के जीवन के नियम न एक हो सकते है और न ही उन्हें एक दूसरे पर लागू किया जा सकता है, ऐसा सोचना ही स्वयं में विरोधाभास है.वह बात अलग है कि समर में ही व्यक्ति कि आदिम इच्छा खुल कर सामने आती है नहीं तो शांति काल में पनपती कला भी तो काम का ही विस्तार है.
(साभार चित्र: अमिता भट्ट, अमेरिका के पूर्वी तट पर रहने वाली भारतीय मूल की अमेरिकी कलाकार)
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