Friday, May 30, 2014
Thursday, May 29, 2014
Wednesday, May 28, 2014
Sunday, May 25, 2014
Media Discourse and common man (मीडिया का विमर्श)
पिछली केंद्र सरकार में पूड़ी-हलवा जीमने वाले चैनल के कर्ता-दर्ता और आम आदमी की माला जपने वाले अब कलम तोड़ कर लिख रहे हैं कि "कांग्रेस को अब भुला दिया जाना चाहिए।"
चुटकी भर नमक की वफादारी तो बनती है पर नहीं इतना सब्र किसे हैं, इस एटीएम के तुरत-फुरत के ज़माने में टाइम खोटी करने को कौन तैयार है ?
सो, इतना भर बचा है महात्मा गांधी के अंतिम आदमी के लिए कि वह आज के मीडिया का विमर्श समझें। वैसे भी, प्रेस क्लब से पार्लियामेंट की बीच में अंतिम आदमी के लिए जगह बची ही कहाँ है !
"सत्ता के रंग हजार, रंगे हुए हैं ये पत्रकार"
Saturday, May 24, 2014
Village in mind (स्मृृतियों का गाँव)
न सुबह जंगल में चरने जाती गायों के खुरों की आवाज़ है, न बकरियों के मिमयाने की टेर। न हतई (चौपाल) पर ताश खेलते बूढ़ों के कहकहे हैं, न दूर से मोटर लॉरी की भोंपू की आवाज़। कितना कुछ पीछे छूट गया है स्मृृतियों के गाँव में।ऐसा गाँव बस मस्तिष्क के मानचित्र पर अंकित है, वह न एम एन श्रीनिवासन से लेकर श्यामाचरण दुबे की समाजशास्त्र की दुनिया में मिलेगा और न आज के गूगल सर्च में.………………
Friday, May 23, 2014
ancient cultural consciousness (समन्वयवादी सांस्कृतिक चेतना)
भारत में आस्था के तीन केन्द्र–बिंदु रहे- एक थी सनातन हिन्दू धर्म की बहुदैवीय आस्तिकता, दूसरी थी शाक्यमुनि गौतम बुद्ध द्वारा प्रचारित आत्मबोध–परक बोधि–दृष्टि और तीसरी थी जिन तीर्थंकरों द्वारा पोषित–प्रसारित प्रज्ञा–दृष्टि।
इन तीनों के समुच्चय से ही बनी प्राचीन भारत की समन्वयवादी सांस्कृतिक चेतना।
http://www.abhivyakti-hindi.org/paryatan/2011/ajanta_alora/ajanta_alora.htm
Wednesday, May 21, 2014
Monday, May 19, 2014
Sunday, May 18, 2014
Friday, May 16, 2014
Thursday, May 15, 2014
Wednesday, May 14, 2014
Tuesday, May 13, 2014
Indian Films-Soft power (भारतीय फिल्म उद्योग-सॉफ्ट पावर)
भारतीय फिल्म उद्योग एक वर्ष में एक दर्जन से ज्यादा भाषाओं में 1000 से अधिक फिल्में बनाता है। भारतीय सिनेमा न केवल देश की बहु-सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है बल्कि देश की भाषायी समृद्धि का भी प्रतीक है। यह एक राष्ट्रीय निधि है तथा सच्चे अर्थों में देश की सॉफ्ट पावर है जो अंतरराष्ट्रीय सम्बंध स्थापित करता है और सहजता के साथ विश्व को जोड़ता है।
भारतीय सिनेमा थियेटरों, लगभग दो हजार मल्टीप्लेक्सों से सीधे तथा टीवी और इंटरनेट के जरिए देश और विदेश के करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2013 में भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग ने वर्ष 2012 के मुकाबले 11.8 प्रतिशत की अधिक विकास दर हासिल की तथा लगभग 92000 करोड़ रुपए का कुल कारोबार किया। इस उद्योग के वर्ष 2018 तक 14.2 प्रतिशत की मिश्रित वार्षिक विकास दर दर्ज करके 1.8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।
हमें कहानी कहने वाले कहानीकारों, इन कहानियों को पर्दे पर उतारने वाले कलाकारों, हमारी कथाओं को आकर्षक बनाने वाले विषय सामग्री के रचनाकारों और विषय सामग्री के संपादकों तथा चित्रों के जरिए हमारे अंतरतम् से बात करने वाले चलचित्रकारों की आवश्यकता है। भविष्य की ओर अग्रसर होते हुए, हमें भारतीय सिनेमा की महान विभूतियों—दादा साहेब फाल्के, सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक, विमल रॉय, मृणाल सेन, अदूर गोपालकृष्णनन, एम.एस. सथ्यू, गिरीश कसरावल्ली, गुरुदत्त तथा देश के भीतर और विश्व मंच पर अग्रणी रहे अन्य लोगों से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
भारतीय फिल्म उद्योग में देश के विभिन्न हिस्सों के लोग शमिल हैं जो अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा समाज के अनेक वर्गों से संबंध रखते हैं। यह एक ऐसा उद्योग है जिसने बहुत से लोगों को जमीन से आसमान तक पहुंचने के अवसर प्रदान किए हैं। मैं फिल्म उद्योग से आग्रह करता हूं कि वह अपनी उदारता, बहुलवाद और समावेशिता को कायम रखे और उसे मजबूत बनाए तथा उसका पूरे देश में विस्तार करे।
-भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार सहित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर (विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03-05-2014)
Monday, May 12, 2014
Friday, May 9, 2014
Shaheedi Diwas (शहीदी दिवस, आठ मई)
(The martyrs of historic ‘Hardinge Bomb Case’ - Master Amir Chand, Bhai Bal Mukund, Master Avadh Bihari, and Basant Kumar Biswas)
On December 23, 1912 to mark the entry of the Governor-General of India into the new Capital, an imperial procession was taken out in Delhi, with Lord Hardinge seated on a caparisoned elephant. When the procession was passing through Chandni Chowk, a bomb was thrown on the elephant, killing the mahawat. Lord Hardinge escaped with injuries.Many persons throughout the country, including Master Amir Chand, a school teacher of Delhi, Bhai Balmukund, Master Awadh Behari, Basant Kumar Biswas, Ganeshilal Khasta, Vishnu Ganesh Pingley, Charan Das, Balraj, Lachmi Narain Sharma and Lala Hanwant Sahey, among many others, were arrested. Sharma and Khasta were taken to Varanasi and sentenced to life imprisonment. Pingley was taken to Lahore and was hanged.The case against the accused started in the Session Judge’s Court and lasted for about a year. Master Amir Chand, Bhai Balmukund and Master Awadh Behari were sentenced to death and Basant Kumar Biswas, Lala Hanwant Sahey and many other were sentenced to life imprisonment and long prison terms. On appeal by the Government in the High Court the sentence of Basant Kumar Biswas was enhanced to death. Appeal was made in the Privy Council with no result.Master Amir Chand, Bhai Balmukund and Master Awadh Behari were executed on May 8, 1915 in Delhi Jail and Basant Kumar Biswas was executed the next day on May 9, 1915 in Ambala Central Jail.In memory of these martyrs, a modest memorial has been raised at the site of “Phansi Ghar” of the Old Delhi, Jail, now in the complex of Maulana Azad Medical College, where homage is paid every year to these sons of Delhi.
Tuesday, May 6, 2014
Monday, May 5, 2014
Sunday, May 4, 2014
Saturday, May 3, 2014
women-agheya (नारी-अज्ञेय)
पढ़-लिख कर नारी बेकार भी नहीं बैठ सकती और उसकी आवश्यकताएं भी कुछ बढ़ जाती हैं। दूसरी ओर आर्थिक स्थितियां लगातार परिवार की आय बढ़ाने का तकाजा करती हैं। और जब शिक्षा के कारण नारी के सामने यह संभावना खुलती है कि आय बढ़ाने में उसकी भी योग हो सकता है तो समाज उसका वैसा विरोध नहीं कर सकता जैसा पहले करता रहा। अब इसे आप चाहें नारी की बढ़ती भूमिका नाम दीजिए, चाहे और कुछ।इसी प्रकार सार्थकता के विचार में एक तरफ यह सोचा जा सकता है कि अगर उद्देश्य परिवार की आय बढ़ाना था तो उसमें नौकरी पेशा स्त्री अंशतः तो सफल होती ही है।
उसका दूसरा पक्ष यह है कि पिता के समान माता का भी लगातार घर से अनुपस्थित रहे तो बच्चों की देखभाल का क्या होता है और उस देखभाल में माता-पिता के स्नेह और उनकी निकटता से उत्पन्न परस्पर विश्वास का भाव का क्या होता है। परिवारों की आय तो बढ़ जाती है, लेकिन बच्चों और माता-पिता के बीच का मनोवैज्ञानिक संबंध शिथिल हो जाता है-बच्चे निरंकुश भी होते हैं, परिवार के प्रति उदासीन भी होते हैं, परिवार से मिलने वाली मूल्य दृष्टि भी खो देते हैं और वर्तमान स्थिति में शिक्षा संस्थाएं मूल्य-बोध में कोई योग नहीं देतीं। ये सब बातें सार्थकता पर प्रश्न-चिन्ह लगाने वाली हैं।
(अज्ञेय पत्रावली, संपादक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, साहित्य अकादमी)
Thursday, May 1, 2014
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