Thursday, August 28, 2014

आँखे (Eyes)




आँखे, 
कितना कुछ अबोला पढ़ लेती हैं 
देख लेती हैं
कैसे झाँक कर 
दिल में 
एक कोने में छुपे दर्द को 
आँखे,
गुन लेती है मन को 
सुन लेती हैं 
आवाज 
सन्नाटे में गिरे सिक्के-सी 
आँखे,
क्यों-कर, कर लेती हैं ऐसा ?
सोचा है, आपने ?
कभी ऐसे ही 
क्यों होता है 
आँखे,
उठ नहीं पाती हैं ऊपर 
देख नहीं पाती 
सामने 
अपने घूरते वजूद को 
आँखे,
नहीं होती दुनिया में आदमी की 
फिर कैसी होती 
दुनिया 
कभी सोचा है आपने ?

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