मीडिया को स्वंत्रत-सम्यक दृष्टि से कब देखेंगे ?
मीडिया का मालिक एक दल में तो पत्रकार दूसरे दल में और क्यों न हो जब एक ही राजनीतिक परिवार के सदस्य अलग-अलग दलों में हो सकते है तो भला पत्रकारिता को भी नैतिकता पर कसने का क्या फायदा?
संपादक किसी एक दल की सरकार से घर के लिए जमीन ले और रिपोर्टर किसी विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी में नामांकन तो भला जो देगा उसकी भला बोलेगा ना.
दूसरे का तो मुंह काला न बोले तो क्या बुलवाना चाहते है?
सच में बहुत नाइंसाफी है, दिल्ली नगरिया में !
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