Saturday, May 27, 2017

Delhi Monument_different story_Pillar Maria_दिल्ली के हर पुराने स्मारक की एक अलग कहानी कुछ कहती है....पिलर मारिया गयएरीरी

दैनिक जागरण, 27052017


दिल्ली के हर पुराने स्मारक की एक अलग कहानी कुछ कहती है....पिलर मारिया गयएरीरी

पिछले 16 साल समकालीन दिल्ली पर काम कर रही इतालवी लेखिका पिलर मारिया गयएरीरी एक ऐसी ही अन्वेषक है, जिनकी हाल में ही रोली बुक्स से "मैप्स आॅफ दिल्ली" नामक एक काॅफी टेबल बुक प्रकाशित हुई है। उन्होंने अपनी पुस्तक में दिल्ली शहर की वास्तुकला और योजना बनाते समय देसी संदर्भ, उसका भूविज्ञान, जलवायु और संस्कृति, की अनदेखी को रेखांकित किया है। इसी क्रम में उन्होंने भारतीय वास्तुकारों के इन मूलभूत कारकों पर ध्यान देने की अपेक्षा केंद्रीयकृत योजना यानी ऊपर से थोपने की प्रवृति की कमी को उजागर किया है।

कुछ अपने बारे में बताए?
मेरा जन्म इटली में हुआ और मैंने बचपन में ही अपने मां-बाप की भारत यात्रा की गवाह बनी। मैंने इटली से ही वास्तुशास्त्र में स्नातक डिग्री हासिल की और पीएचडी में दाखिला लिया। मेरी पीएचडी का विषय "स्वतंत्रता से पूर्व और पश्चात दिल्ली के शहरी विकास और वास्तुकला पर अंग्रेजी-अमेरिकी संस्कृति के प्रभाव" था। मैं अपनी पीएचडी खत्म करके अभी गोयनका विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में पढ़ा रही हूँ।


आपको अपनी दिल्ली के नक्शों पर हाल में प्रकाशित हुई पुस्तक "मैप्स आॅफ दिल्ली" का विचार कैसे आया?
मुझे आजादी से पहले और बाद की दिल्ली के वास्तुशास्त्र और योजना विषय पर अपनी पीएचडी के दौरान यह बात ध्यान में आई कि विशेषज्ञों में भी आजादी से पहले और बाद की दिल्ली के विकास को लेकर काफी भम्र है। ऐसे में मैंने नक्शों की मदद से इस भम्र को दूर करने की कोशिश। जब मैं देश-भर के अभिलेखागारों और संस्थानों में देश की आजादी से पहले और आजादी के बाद के नक्शों को खोज रही थी, उसी दौरान मैंने इससे जुड़े दूसरे दस्तावेज भी खोजकर एकत्र करने लगी।

ऐसे में दिल्ली पर आपका ध्यान कैसे गया?
एक देश के रूप में इटली का ज्यादा फैलाव नहीं हुआ है। वहां मौजूदा भवनों के संरक्षण और दोबारा उपयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है। मैं अपनी पीएचडी के दौरान एक ऐसे देश की तलाश में थी, जिसकी एक प्राचीन मजबूत परंपरा रही हो लेकिन साथ ही वहां आधुनिक समय में समकालीनता को बनाए रखने की चुनौती भी हो। दिल्ली भारत की एक जीवंत और फैलती राजधानी है। मुझे कहने में कोई हिचक नहीं है कि यह अतीत और वर्तमान के बीच संबंधों का विश्लेषण करने का एक दिलचस्प शहर है। इसी जिज्ञासा के कारण दिल्ली को जानने का मेरा सफर शुरू हुआ।

आपने अपनी पुस्तक के लिए शोध कार्य कैसे किया?
मेरी पुस्तक एक तरह से पीएचडी का ही परिणाम है। मुझे अनेक भारतीय अभिलेखागारों में उपलब्ध सभी मानचित्रों को जुटाने, उनका चयन करने और एक सलीके से पिरोने में काफी समय लगा। धूल भरे पर मूल्यवान अभिलेखीय सामग्री वाले अभिलेखागारों में लंबा समय बिताने के साथ बहुमूल्य मानचित्रों की खोज का यह एक अविश्वसनीय अनुभव था। मैंने जिस संकल्प को लेकर दिल्ली शहर का अध्ययन करना शुरू किया यह पुस्तक उसी का प्रतिफल है। मेरा मानना है कि अगर मेरे पास इस तरह की पुस्तक होती तो मेरे लिए शोध करना काफी सरल होता। अब मेरी इच्छा है कि अब यह पुस्तक दूसरे विद्वानों के लिए एक प्रस्थान बिंदु साबित हो।

आपकी पुस्तक 19वीं शताब्दी के बाद बने नक्शों की कहानी बयान करती है। दिल्ली का सबसे पुराना नक्शा कब का है?
दिल्ली से जुड़े अलग अलग नक्शे विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अभिलेखागारों में संग्रहित हैं और यही कारण है कि यह पता लगाना और बताना थोड़ा मुश्किल है कि सबसे पुराना नक्शा कौन सा है। मेरी किताब में पहला नक्शा 19वीं शताब्दी की शुरुआत का है। हम जानते है कि यह वह समय है जब अंग्रेज पहले-पहल दिल्ली पहुंचे थे और अंग्रेज-मराठा युद्ध (१८०३) हुआ था। एक तरह से कहा जाता सकता है कि मानचित्र की विधा का आरंभ वास्तव में उपनिवेशवाद से जुड़ा हुआ है। मानचित्र, ज्ञान और राजनीतिक शक्ति हमेशा से एक दूसरे से जुड़ी रही हैं।

आपने अपनी किताब के लिए नक्शों का कैसे चयन किया?
मैंने एक वास्तुकार की निगाह से ऐसे मानचित्रों को चुना जो कि शहर के विकास की कहानी बयान करते थे। दरअसल, इतिहास के मूल्यवान प्राथमिक स्रोत इन नक्शों से एक इतिहासकार या एक नक्शा बनाने वाला अपने हिसाब से एक बिलकुल अलग कहानी लिख सकता है।
आप कई शताब्दियों में विकसित हुए शहर को समझते हुए आज की दिल्ली की आवास सुविधाओं, प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों, खाली जमीनों के अधिकतम उपयोग और जनसंख्या विस्फोट के हिसाब कैसे देखती हैं?
मैं 1991 से इन सब मुद्दों को ध्यान में रखते हुए समकालीन दिल्ली को समझने की कोशिश कर रही हूं। समकालीन विकास के मूल को समझने के लिए इतिहास और प्राचीन मानचित्र विशेष रूप से सार्थक उपकरण हैं।
मुझे यह लगा कि आज की दिल्ली के महानगरीय जीवन की अनेक समस्याएं स्थानीय स्तर पर गलत मॉडल, जिसमें ज्यादातर पश्चिम के माॅडल हैं, को अपनाने से पैदा हुई है। वास्तुकला और योजना में स्थानीय तत्वों जैसे भूविज्ञान, जलवायु और संस्कृति की अनदेखी की गई। इतना ही नहीं, देसी वास्तुकारों ने स्थानीय वस्तुओं का समावेश करने की बजाय बने बनाए माॅडलों की नकल की।
यहां के युवा शहरी वास्तुकारों में अभी भी विकास के विदेशी मॉडलों को लेकर एक ललक है। इसका एक कारण वास्तुकला की पढ़ाई के पाठ्यक्रम में भारतीय इतिहास और समृद्व विरासत वास्तुकला का न के बराबर होना है। किसी विदेशी वस्तु और ज्ञान से प्रेरणा लेना और उसकी नकल करना तभी ठीक है जब युवा वास्तुकारों को इस बात का ज्ञान हो कि वे क्या नकल कर रहे हैं और क्या उनके चयन से स्थानीय नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। दुर्भाग्य से, इन युवा वास्तुकारों में इस जागरूकता का अभाव है।

आपको दिल्ली के नक्शों पर शोध करते समय किस नक्शे ने सबसे अधिक प्रभावित किया और क्यों?
मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित हाथ से बने खूबसूरत नक्शों ने किया। उसमें भी खासकर "1807 की दिल्ली" का नक्शा, जब दिल्ली के गांवों, नहरों, खेतों और जलमार्गों का एक अद्भुत शहर था। इस पुराने नक्शे से इस बात का पता चलता है कि तब के शहरी नियोजन में स्थानीय भूगोल और स्थलाकृति का ध्यान रखा जाता था और किस तरह दिल्ली सरीखे पुराने नगर हकीकत में प्रकृति के अनुकूल और अनुरूप बसे थे न कि उसके विरुद्ध। उदाहरण के लिए अगर शाहजहाँनाबाद के स्थान के चयन पर विचार करें तो पता चलेगा कि यह एक पहाड़ी पर बना शहर था जो कि प्राकृतिक रूप से बाढ़ से बचाव की स्थिति में था। वास्तुकारों और योजनाकारों को पुरानी राजधानी के प्रकृति के साथ सहयोग की भूमिका के संबंध से प्रेरित होकर एक बेहतर और पर्यावरण-अनुकूल शहर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। दिल्ली के शानदार अतीत के नक्शों को देखना-बूझना एक अच्छा अनुभव हो सकता है।
आप अपनी किताब में 1857 की पहली आजादी की लड़ाई को लेकर नक्शों में तब की दिल्ली के बारे में कुछ बताएं?
"दिल्ली की घेराबंदी, 1857 का नक्शा" अंग्रेज छावनी की पहली स्थिति और बसावट को प्रदर्शित करता है। शाहजहांबाद की उत्तर दिशा में स्थित छावनी को रिज की ओर से सुरक्षा मिली हुई थी। जिसकी विशेषता छावनी का एक बहुत सरल और कामकाजी ग्रिड पैटर्न का होना था। अंग्रेजों की सैन्य घेराबंदी को गहराई से समझने के लिए 8 जून से 14 सितंबर 1857 की अवधि में दिल्ली में ब्रितानी सेना की तैनाती योजना को देखना उपयुक्त है। जहां, 1857 के गदर की सैन्य घटना का वास्तव में अधिक विस्तार में वर्णन किया गया है। नक्शे पर सैन्य युद्धाभ्यास साफ दिखते हैं, फिर चाहे वह दुश्मन की खाई हो, विशिष्ट तोपखानों की तैनाती की स्थिति या बाएं ओर से घुसने की संभावना हो अथवा दाएं ओर से घुसने की संभावना का संकेत। यहां अलग-अलग तोपखानों को चिह्नित करते हुए उनके कमांडिंग ब्रिगेडियर के नाम के साथ नामित किया हुआ है, जिसमें पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का दृश्य साफ दिखाई देता है।
इस किताब पर काम करते समय बताने लायक कोई दिलचस्प किस्सा बताएं?
इस किताब को लिखते समय मुझे नक्षों में छिपे अनेक छोटी पर आकर्षक ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में जानकारी मिली। उदाहरण के लिए जैसे, दिल्ली 1857ःशहर की योजना और उससे सटा हुए इलाकों वाले नक्षे में "जहां निकोलसन गिरा" का वाक्य लिखा होना, रिज पर ब्रितानी कैम्प में क्वार्टर मास्टर जनरल के आॅफिस का बना होना या दिल्ली का युद्ध: लाॅर्ड लेक का मराठों के विरुद्ध अभियानों वाले नक़्शे में "आपस में खींची हुई दो छोटी तलवारों" से मराठा-अंग्रेज युद्ध (पटपडगंज-१८०३) के स्थान को चिन्हित करता है।
आपको दिल्ली के कौन से इलाके ऐतिहासिक रूप से न केवल समृद्ध बल्कि अधिक आकर्षक लगे हैं और क्यों?
एक दिल्ली में अनेक शहर समाए हुए हैं और यही कारण है कि यहां इतिहास की कई तहें हैं। ऐसे में किसी एक खास इलाके को चुनना संभव नहीं है। दिल्ली अलग-अलग हिस्सों से बना एक शहर है, जिसके हरेक हिस्से की अपनी विशिष्टताएं और विशेषताएं हैं। ये इतने भिन्न हैं कि हम वास्तव में इन भागों को शहर के भीतर अनेक शहर के रूप में पहचान सकते हैं। हर शहर ऐसे विकसित नहीं हुआ कि जिसके विकास के मूल में अलग-अलग केंद्र रहे हो। उदाहरण के लिए मिलान जैसा शहर जो कि धीरे-धीरे एक प्राचीन रोमन केंद्र की बसावट से ही विकसित हुआ।
मेरा मानना है कि समूची दिल्ली के हर कोने में मौजूद स्मारक की अपनी एक अलग कहानी है। ऐसे में बस जरूरत है] उस छिपी हुई कहानी में दिलचस्पी होने और उसे खोजने की।


पिलर मारिया गयएरीरी


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