Wednesday, May 31, 2017
Rajasthan_dharti dhora ri_धरती धोरा रीं
अजमेर के दक्षिण पश्चिम की ओर ऊपर उठा हुआ लगभग 700 फुट ऊंची पहाड़ी पर भव्य तारागढ़ का किला है। इस किले को पहले अजयमेरू कहा जाता था। बिजोलिया में मिले शिलालेख से बात प्रमाणित होती है। तारागढ़ पर चढ़ाई एक कठिन काम है। जब घाटी के नीचे से दृश्य देखा जाय, दूरी से पहाड़ी पर स्थित दुर्ग रात्रि में तारे सा सुशोभित (तारा सुशोभित दुर्ग) दिखाई पड़ता है। इसी कारण यह दुर्ग तारागढ़ कहलाया। इसमें कुछ बड़े तो कुछ छोटे द्वार हैं। यहां कुल नौ द्वार हैं जो वर्तमान में अलग अलग नामों (लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा, गगुड़ी की फाटक, विजय द्वार, भवानी पोल और हाथीपोल) से जाने जाते हैं। बीतली नाम की पहाड़ी पर बनाए जाने के कारण तारागढ़ को ग्राम गीतों में गढ़ बीतली भी कहा जाता है। तारागढ़ ने बहुत सी घेराबन्दियों का सामना किया, कई लड़ाइयां देखी जिनमें इसकी दीवारें टूटी और इसके बाद विजेताओं ने उसे ठीक करवाया या नई दीवारों को बनवाया। यहां आज भी हिंदुओं शासकों के समय के बनवाए गए मूल किले के अवशेषों को चारदीवारी की निचली सतह में लगे बलुआ पत्थर के चौकों में देखा जा सकता है।
किशनगढ़
पुष्कर
यहा पांच प्रमुख मंदिर हैं, ब्रह्मा, सावित्री, बद्रीनारायण, वराह तथा आत्मतेश्वसर। पुष्कर कस्बा दो भागों में बंटा हुआ है। जिस भाग में बराहजी और रंगजी का मंदिर स्थित है उसे छोटी बस्ती कहा जाता है तथा दूसरे भाग को बड़ी बस्ती।
नगर से किले तक पहुंचने के लिए चार द्वार हैं, जो अखेपोल, गणेशपोल, बूतापोल तथा हवापोल के नाम से प्रख्यात है। किले के प्रांगण में चार वैष्णव तथा आठ जैन मंदिर हैं। वैष्णव मन्दिरों में से एक के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यह 12 वीं शताब्दी में, रावल जैसल ने बनवाया था, जो आदिनारायण तथा टीकमजी के मन्दिर के नाम से प्रख्यात है, जबकि दूसरा जो लक्ष्मीनाथजी का मंदिर कहलाता है रावल लखन से संबंधित हे तथा अपने सोने व चांदी से मढ़े कपाटों के कारण विशेष महत्व रखता है।
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