Wednesday, May 31, 2017

Rajasthan_dharti dhora ri_धरती धोरा रीं



देश के सबसे रंगीले और विविधतापूर्ण राज्य राजस्थान का नाम आते ही दिमाग में दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली से लेकर थार के रेगिस्तान के धोरों का चित्र उभरता है। धरती धोरा रीं वाले इस प्रदेश में अरावली की तलहटी में बसे अजमेर, किशनगढ़ और पुष्कर से लेकर पाकिस्तान की सीमा से सटे जैसलमेर की सैर का अपना ही आनंद है। 


अजमेर
'अजमेर' शब्द की व्युत्पति अजय मेरू (अपराजेय पर्वत) से हुई है। ऐसा माना जाता है कि अजमेर को अजयपाल चैहान ने सातवीं शती में बसाया थां। अजयपाल ने शासन में अजमेर एक प्रमुख नगर बन गया था। उसने यहां तारागढ़ का किला बनवाया तो आनाजी ने अनासागर का बांध बनवाया। भारत में विदेशी मुस्लिम हमलावरों से पहले पृथ्वीराज चौहान अजमेर सहित उत्तरी भारत के अंतिम हिंदू शासक थे, जिनकी मुहम्मद गौरी से तराइन की लड़ाई (वर्ष 1193) में हार हुई। इस हार के साथ गौरी की मुस्लिम फौज ने लूटपाट की। उसके बाद अजमेर पर दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों, मालवा के मुस्लिम शासकों और फिर मुगलों का कब्जा रहा। 


अजमेर के दक्षिण पश्चिम की ओर ऊपर उठा हुआ लगभग 700 फुट ऊंची पहाड़ी पर भव्य तारागढ़ का किला है। इस किले को पहले अजयमेरू कहा जाता था। बिजोलिया में मिले शिलालेख से बात प्रमाणित होती है। तारागढ़ पर चढ़ाई एक कठिन काम है। जब घाटी के नीचे से दृश्य देखा जाय, दूरी से पहाड़ी पर स्थित दुर्ग रात्रि में तारे सा सुशोभित (तारा सुशोभित दुर्ग) दिखाई पड़ता है। इसी कारण यह दुर्ग तारागढ़ कहलाया। इसमें कुछ बड़े तो कुछ छोटे द्वार हैं। यहां कुल नौ द्वार हैं जो वर्तमान में अलग अलग नामों (लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा, गगुड़ी की फाटक, विजय द्वार, भवानी पोल और हाथीपोल) से जाने जाते हैं। बीतली नाम की पहाड़ी पर बनाए जाने के कारण तारागढ़ को ग्राम गीतों में गढ़ बीतली भी कहा जाता है। तारागढ़ ने बहुत सी घेराबन्दियों का सामना किया, कई लड़ाइयां देखी जिनमें इसकी दीवारें टूटी और इसके बाद विजेताओं ने उसे ठीक करवाया या नई दीवारों को बनवाया। यहां आज भी हिंदुओं शासकों के समय के बनवाए गए मूल किले के अवशेषों को चारदीवारी की निचली सतह में लगे बलुआ पत्थर के चौकों में देखा जा सकता है।

मुगल बादशाह अकबर ख्वाजा मुईनुदीन चिश्ती की दरगाह, तेरहवीं सदी में बनी, पर बेटा सलीम के पैदा होने की मन्नत पूरी हो जाने पर अपनी कसम पूरी करने के लिए आया था। इसी वजह से उसने और जहांगीर ने यहां इबादतखाने बनाकर इसका विस्तार किया। आज यहां इस दरगाह पर छह दिन के सालाना उर्स (धार्मिक मेला) लगता है, जिसमें पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश के मुस्लिम जायरीन (तीर्थ यात्री) हिस्सा लेने आते हैं। इस बात से कम लोग ही परिचित है कि सर टाॅमस रो ने अंग्रेज राजा जेम्स प्रथम के राजदूत के रूप में अपना परिचय पत्र जहांगीर के समक्ष 10 जनवरी 1616 को अजमेर में ही प्रस्तुत किया था। शाहजहां का बड़ा बेटा दारा शिकोह भी अजमेर में ही पैदा हुआ था। यहां तक कि शाहजहां के बेटों में उत्तराधिकार का युद्ध छिड़ा तो औरंगजेब ने सन् 1659 में अजमेर के पास दौराई के युद्ध में विजय प्राप्त की थी। 


अजमेर में अढ़ाई दिन का झोपड़ा के नाम से प्रसिद्ध एक स्मारक है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि स्मारक को अढ़ाई दिन में बना दिया गया था। इसमें चारों ओर से प्राचीरों से घिरा एक प्रांगण है, भीतर सात मेहराबों की एक दीवार है। इसे एक संस्कृत पीठ (पाठशाला) के रूप में माना जाता रहा है, जिसे विदेशी मुस्लिम हमलावरों ने नष्ट कर दिया। अंग्रेज इतिहासकार जनरल ए कनिंघम ने कहा था कि "भारत में ऐसा कोई निर्माण नहीं है जो ऐतिहासिक महत्व और पुरातात्विक गौरव की दृष्टि से इससे अधिक सुरक्षा का अधिकारी हो।" वायसराय लार्ड मेयो ने 1900-1902 में इसकी मरम्मत करायी थी। अढ़ाई दिन के झोपड़े के प्रांगण में हुई खुदाई में एक सौ के करीब मूर्तियां पत्थर के खम्भे, स्मारक और र्तिमुखों के अंश जैसे पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। अब इन्हें यहां के संग्रहालय में देखा जा सकता है।

अजमेर की "आनासागर" नामक कृत्रिम आकर्षक झील देश भर में प्रसिद्ध है। इसे पृथ्वीराज चौहान के पितामाह अर्णोराज ने बनाया था जिनके नामपर इसका नाम है। इसका निर्माण 12 शती में हुआ था। "पृथ्वीराज विजय" के अनुसार यहां तत्कालीन शासक अर्णोराज ने अजमेर वासियों की सहायता से आक्रमणकारी शत्रुओं से भीषण युद्ध किया था। इस भीषण रक्तपात के स्थल को पवित्र करने के लिए आनाजी ने यहां पुष्कर के वनों से निकलने वाली एक छोटी नदी पर बांध बनवाकर इसे एक झील का रूप दे दिया।


आनाजी के इस सरोवर की विशाल पाल के निर्माण को देखने के लिए आज भी दूर दूर से सैलानी आते हैं। मुगल सम्राट जहांगीर और शाहजहां ने चौड़े बन्धे के ऊपर सुन्दर संगमरमर की कलाकृतियों का निर्माण करके किनारे को और अधिक सुन्दर बना दिया। उन्होंने किनारोें पर हमाम (स्नानागार) भी बनवाए थे, जिनका फर्श आज भी देखा जा सकता है।


किशनगढ़
यह बात कम लोग ही जानते है कि भारत की "मोनालिसा" कही जाने वाली "बणी-ठणी" का चित्र किशनगढ़ शैली में ही बना है। आजादी से पहले किशनगढ़ एक स्वतंत्र रियासत थी। कला के क्षेत्र में किशनगढ़ का विशिष्ट स्थान है। किशनगढ़ की चित्र शैली पूरे देश में विशेष प्रसिद्ध है। किशनगढ़ अपने धातुशिल्प के लिए भी मशहूर है। आज किशनगढ़ संगमरमर पत्थर का सबसे बड़ा बाजार है, जहां से देश-विदेश को संगमरमर सहित दूसरे कीमती पत्थर बेचा जाता है। 


किशनगढ़ के सुखसागर के पास बना एक आधुनिक नवग्रह स्थल देखने लायक स्थान है। इसे पिछली शताब्दी में रामनाथसिंह मेहता ने बनवाया था। इस स्थल पर एक अष्टकोणीय चबूतरे पर सूर्य स्थापित है। शेष आठ ग्रह आठ दिशाओं में स्थापित शनि, राहु और केतु की प्रतिमाएं काले पत्थर की बनी हुई है जबकि शेष ग्रहों की मूर्तियां संगमरमर की बनी हुई है। मंगल का रंग लाल है।

पुष्कर
अजमेर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुष्कर हिंदुओ का ऐसा तीर्थ स्थल है जिसे अंग्रेज इतिहासकार कर्नल जेम्स टाॅड ने पवित्रता में मानसरोवर के बराबर माना है। ऐसी मान्यता है कि ब्रहमा ने यहां सृष्टि का यज्ञ किया था और सरस्वती पांच धाराओं में फिर प्रकट हुई। इन दोनों धारणाओं को पुष्ट करने वाली कथा पद्मपुराण के अन्र्तगत पुष्कर महात्म्य में देखी जा सकती है। कमल के पर्यायवाची के रूप में यह स्थान पुष्कर कहलाया।
सरोवर के किनारे बसा हुआ पुष्कर के तीन ओर पहाड़ है चौथी ओर मारवाड़ के मैदानों से उड़कर आई धूल से बने रेत के टीले हैं। इससे झील के पानी के बहाव पर पूरी तरह रोक लग गई है। बहकर जाने का कोई मार्ग नहीं है। सरोवर के लगभग सब ओर स्नान के लिए घाट बने हुए हैं। उनसे सटे हुए राजस्थान के राजाओं और सेठों के भवन बने हुए हैं।

यहा पांच प्रमुख मंदिर हैं, ब्रह्मा, सावित्री, बद्रीनारायण, वराह तथा आत्मतेश्वसर। पुष्कर कस्बा दो भागों में बंटा हुआ है। जिस भाग में बराहजी और रंगजी का मंदिर स्थित है उसे छोटी बस्ती कहा जाता है तथा दूसरे भाग को बड़ी बस्ती।
पुष्कर में कार्तिक स्नान के समय प्रतिवर्ष प्रसिद्ध मेला लगता है। स्नानार्थी वहां एकादशी से पूर्णिमा तक पूरे पांच दिन रहा करते हैं। जहांगीर के समय के आलेखों में भी पुष्कर के पशु मेले का उल्लेख मिलता है। इसे उत्तर पश्चिमी भारत का सबसे बड़े मेलों में से एक बताया जाता है। पुष्कर मेला अब एक प्रमुख पर्यटन आकर्षण बन गया है। बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक मेले में आते हैं।



जैसलमेर
जैसलमेर शहर राव जैसा अथवा जैसल ने बसाया था। यह शहर नीची पर्वत मालाओं के दक्षिणी छोर पर बसा हुआ है तथा लगभग पांच किलोमीटर के घेरे में, तीन से पांच किलोमीटर की ऊंचाई तथा दो से तीन मीटर की मोटाई वाली पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है, जो बुर्जों व कोनों पर मीनारों से आरक्षित है। इन दीवार की भीतर, दक्षिण की ओर रावल जैसल का बनाया गया एक किला है, जो आसपास के क्षेत्र से लगभग 76 मीटर ऊपर है। नगर में दो प्रमुख प्रवेश द्वार है, पूर्व में घड़सीसर दरवाजा तथा पश्चिम में अमरसर दरवाजा जो कि पक्की व पटरी युक्त सड़क से जुड़े हुए हैं। यही सड़क मुख्य सार्वजनिक मार्ग है तथा कुछ स्थानों पर पर्याप्त चौड़ी है जिनमें से कुछ स्थानों का बाजार के रूप में उपयोग होता है। घरसीसर तालाब से पानी प्राप्त किया जाता है, जो उसी नाम के दरवाजे के दक्षिण पूर्व में, थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि यह तालाब रावल घड़सिंह अथवा घरसी ने बनवाया था।

नगर से किले तक पहुंचने के लिए चार द्वार हैं, जो अखेपोल, गणेशपोल, बूतापोल तथा हवापोल के नाम से प्रख्यात है। किले के प्रांगण में चार वैष्णव तथा आठ जैन मंदिर हैं। वैष्णव मन्दिरों में से एक के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यह 12 वीं शताब्दी में, रावल जैसल ने बनवाया था, जो आदिनारायण तथा टीकमजी के मन्दिर के नाम से प्रख्यात है, जबकि दूसरा जो लक्ष्मीनाथजी का मंदिर कहलाता है रावल लखन से संबंधित हे तथा अपने सोने व चांदी से मढ़े कपाटों के कारण विशेष महत्व रखता है।

किला, नगर पर परकोटा तथा नगर के सभी विशाल भवन, पीले चूना पत्थर से बने हुए हैं। जैसलमेर, पीले संगमरमर पत्थर के लिए प्रसिद्व है। ऊनी कंबल व ऊंट के बालों से बने कालीनें भी इस क्षेत्र के परम्परागत उद्योग है। प्राचीन काल में, आने जाने वाले धनवान कारवों के लिए, यह नगर प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र व विश्राम स्थल रहा है। यहां पर तीन उद्यान हैं, बड़ा बाग, अमरसागर और मूलसागर, जो मरूस्थल में नखलिस्तान भूमि जैसे दिखाई देते हैं। इस बाग में दिवंगत राजपरिवारों के राजाओं की छतरियां हैं। यहां एक बंध भी है जो कि जैत बंध कहलाता है, जिसका निर्माण महारावल जैतसिंह के काल में आरंभ हुआ था और उनके पुत्र लूनकरण ने इसे पूरा किया था। 




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