मन ही बावरा था जो हर बार समझ नहीं पाया उसने हर बार अनदेखी की मन ही अँधा था जो हर बार बूझ नहीं पाया उसने हर बार जलाना चाह एक मैं ही था जो प्रह्लाद की तरह निकल आया अब ठुकराने,
अनदेखी करने, जलाने के बहाने वह ही जाने
जो था, है, रहेगाकब तक ऐसे जब तक वैसे
मैं भी रहूँगाऐसे ही सहूंगा चुपचाप-निशब्द सन्नाटा-मौन जब तक नहीं पूछेगा
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