जब मंजिल पर पहुँचने से पहले ही आँखें पथरा जाएं जब कुछ हासिल करने से पहले ही मन पूरा भर आएं जब थकान के मारे शरीर चूर होकर अधमरा हो जाएं जब जीवन में सारे विश्वास कसौटी पर खरे न उतर पाएं
तब अकेले ही चलते रहना मानो एक लक्ष्य बन जाएं तब भरे मन से लड़खड़ाते पैरों का चलना ही हो पाएं तब टूटे शरीर के साथ सधे मन से ही सफ़र हो पाएं तब नए संकल्प के साथ दीप रास्ते भर झिलमिलाएं
अब कैसे बढ़े जीवन के समर में प्रश्न हो मुंह बाएं अब तन-मन दोनों ही आधे अधूरे होकर पूरा पाएं अब सफ़र से ज्यादा चलना ही संकल्प हो जाएं अब न हो कोई हो साथ पथ ही पाथेय हो जाएं
कहो अकेले मंत्र को, दो गूंजा दिशा सभी जो जाएं सहो अकेले जीवन के एकाकीपन को, बहुजन जो पाएं
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