Saturday, May 20, 2017

Hindurao Baoli_हिंदू राव की बावड़ी

20052017_दैनिक जागरण 





उत्तरी दिल्ली में दिल्ली नगर निगम की ओर से संचालित हिंदू राव अस्पताल के पश्चिमी प्रवेश द्वार के निकट एक बावड़ी बनी हुई है। सिविल लाइन्स क्षेत्र में हिंदू राव मार्ग पर बनी यह बावड़ी कमला नेहरू रिज पर पीर गायब के दक्षिण पश्चिम में करीब 50 गज की दूरी पर है। इस बावली के निर्माण की अवधि 14 सदी के प्रारंभ में फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल के समय की मानी जाती है।

आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के स्वामित्व में संरक्षित इमारत के रूप में दर्ज यह बावली राजधानी में बनी सबसे विशाल बावड़ियों में से एक मानी जाती है। मूल रूप से इस बावली के चारों ओर कक्ष बन हुए थे।


पत्थरों की चिनाई वाली दीवार वाली यह बावली गहराई वाली एक संरचना है, जिसकी गहराई का सही आकलन, उसमें फैली भारी वनस्पति के कारण नहीं हुआ है। इस बावली की प्राकृतिक अवस्था भी अच्छी नहीं है यानी यह रखरखाव के अभाव में जीर्ण शीर्ण स्थिति में है। यह बावली चारों ओर से वनस्पति से इस कदर ढकी हुई है कि यह भूमि पर एक गड्डे से अधिक नहीं प्रतीत होती है। टूट फूट हो जाने के कारण अब पूरी इमारत देख पाना संभव नहीं रह गया है।


मौलवी जफर हसन ने "दिल्ली के स्मारक: महान मुगलों और अन्य के स्थायी भव्यता" नामक अपनी पुस्तक के दूसरे खंड में इस बावली का उल्लेख किया है। जफर हसन ने उत्तर दिशा से आने वाली 193 मीटर लंबी एक सुरंग का उल्लेख किया है। 2.15 मीटर ऊंची इस सुरंग, जिसके बनने का उद्देश्य अज्ञात है, में हवा की आवाजाही के लिए उपयुक्त स्थान होने के साथ दरवाजे भी थे। अबुल फजल ने "आइन-ए-अकबरी" में लिखा है कि इस सुरंग से होकर फिरोजाबाद, यानी आज के फिरोजशाह कोटला से जहाजनुमा यानी उत्तरी रिज पर बनी इस इमारत की ओर आया-जाया जा सकता था। यहां पर सुरंग बने होने के तो प्रमाण आज भी है।

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