Saturday, May 13, 2017

Yogmaya Temple_योगमाया का मंदिर

दैनिक जागरण, 13052017







































































भागवत में श्रीकृष्ण के जन्म के सम्बन्ध में कथा है कि देवी योगमाया ने ही मथुरा के शासक कंस से कृष्ण के प्राण बचाए थे। देवी योगमाया के बारे में मान्यता है कि वे श्रीकृष्ण की बड़ी बहन थी। ऐसा माना जाता है कि उसी योगमाया की स्मृति में शायद पांडवों ने यह मंदिर स्थापित किया या जब इन्द्रप्रस्थ को बसाने के लिए खांडव वन को जलाकर कृष्ण और अर्जुन निवृत्त हुए तो उस विजय की स्मृति में यह मंदिर बना क्योंकि बिना भगवान की योग शक्ति के देवताओं के राजा इन्द्र को पराजित करना सहज नहीं था।
जब तोमर राजपूत शासकों ने इस स्थान पर अपनी राजधानी के लिए दिल्ली बसाई तो उन्होंने योगमाया की पूजा करनी प्रारम्भ की क्योंकि चंद्रवंशी तोमर देवी के उपासक थे। तोमर शासकों ने लालकोट को अपनी नई राजधानी बनाया तथा यहां एक शहर को बसाया, जिसको ढिल्ली, ढिल्लिका अथवा ढिल्लिकापुरी के नाम से जाना गया। यह शहर पूर्ववर्ती मंदिरों की नगरी योगिनीपुरा के इर्द-गिर्द बसाया गया जहां इन्होंने कई मंदिरों का निर्माण कराया, जिसके अवशेष आज भी कुतुब पुरातात्विक क्षेत्र तथा उसके समीपस्थ क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं।
ऐसा माना जाता है कि महरौली स्थित आज का मंदिर सन् 1827 में मुगल शासक अकबर द्वितीय के काल में लाला सेठमलजी ने बनवाया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सैय्यद अहमद खान ने दिल्ली की 232 इमारतों का शोधपरक ऐतिहासिक परिचय देने वाली अपनी पुस्तक “आसारुस्सनादीद” में लिखा है कि वर्तमान मंदिर का उन्नीसवीं सदी में पुनर्निर्माण किया गया, लेकिन यह स्थल उससे भी प्राचीन है।
नागर शैली में बने मंदिर के प्रवेशद्वार के ऊपर एक नाग की आकृति बनी हुई है, जो चिंतामाया का प्रतीक है। मन्दिर का अहाता चार सौ फुट मुरब्बा है। चारों ओर कोनों पर बुर्जियां है। मंदिर की चारदीवारी है जिसमें पूर्व की ओर के दरवाजे से दाखिल होते हैं।
यह मंदिर कुतुब मीनार परिसर में स्थित लोहे की लाट से करीब 260 गज उत्तर पश्चिम में स्थित है। मंदिर में मूर्ति नहीं है बल्कि काले पत्थर का गोलाकार एक पिंड संगमरमर के दो फुट गहरे कुंड में स्थापित किया हुआ है। पिंडी को लाल वस्त्र से ढका हुआ है, जिसका मुख दक्षिण की ओर है। मंदिर का कमरा करीब बीस फुट चौकोर होगा। फर्श संगमरमर का है। ऊपर गोपुर बना हुआ है जिसमें शीशे जड़े हुए हैं। मंदिर के द्वार पर लिखा हुआ है-योगमाये महालक्ष्मी नारायणी नमस्तुते।
यह स्थान देवी के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में गिना जाता है। मंदिर में घंटे नहीं हैं। यहां मदिरा और मांस का चढ़ावा वर्जित है। श्रावण शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यहां मेला लगता है। मंदिर के तीन द्वार है। दक्षिण द्वार के ऐन सामने दो शेर लोहे के सींखचों के एक बक्स में बैठे हुए हैं जो देवी के वाहन हैं। इनके ऊपर चार घंटे लटकते हैं। शेरों की पुश्त की ओर एक दालान है जिसमें पश्चिम की ओर के कोने में गणेश की मूर्ति है और एक छोटी शिला भैरव की है।
मंदिर के उत्तरी द्वार की ओर खड़े होकर तोमर शासक अनंगपाल द्वितीय का बनवाया अनंगताल दिखाई देता है। उत्तर पश्चिम कोण में एक पक्का कुआं है जो रायपिथौरा यानि दिल्ली के अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान के समय का माना जाता है।

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