Saturday, May 27, 2017

Development of Delhi with Railways_रेल की पटरियों के साथ बढ़ी-बसी दिल्ली

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अंग्रेजों के जमाने में दिल्ली एक लंबे कालखंड (1857-1911) तक तबाही की गवाह बनी। उसके बाद यहाँ रेलवे के आगमन के साथ ही इमारतों के बनने का सिलसिला शुरू हुआ। दिल्ली शहर के पश्चिम की दिशा के भू-भाग में स्थानीय जनता की भलाई के लिए विकास के कुछ प्रयास किये गए। लिहाजा, तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने अपनी सेना और प्रशासन में गोरे कर्मचारी और अफसरानों के लिए घर, कार्यालय, चर्च और बाजार बनाए। इस तरह, कुछ समय में ही शाहजहांनाबाद के परकोटे की दीवार से बाहर गोरों की आबादी वाला नया शहर दिल्ली के नक़्शे उभरकर सामने आया।

जनसंख्या में बढ़ोत्तरी के हिसाब से यह एक महत्वपूर्ण काल था। ख़ास बात यह भी है कि 1911 में जब देश की राजधानी कोलकता से दिल्ली लायी गयी, तब भी अंग्रेजों ने बड़ी इमारतों, रिहायशी मकानों के अलावा दफ्तरों का एक नए सिरे से एक नए नगर योजना बनाई।

वैसे तो 1860 के बाद से अंग्रेज़ सरकार ने शहर का पुनर्निर्माण शुरू कर दिया था और इसी प्रक्रिया में दिल्ली के रूप-स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला। इस मामले में सबसे रोचक तथ्य यह है की 1857 की पहली जंगे-आज़ादी के बाद सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही अंग्रेज सरकार ने शहर के विकास की योजना का खाका तैयार किया।

जंगे-आज़ादी के कोई चार साल बाद (1861), रेलवे लाइन बिछाने की योजना के तहत लाल किले के कलकत्ता गेट सहित कश्मीरी गेट और मोरी गेट के बीच के इलाके को ध्वस्त कर दिया। 1857 की घटना से अंग्रेजों ने यह सबक सीखा कि दिल्ली की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है और उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। 1857 में हाथ जला चुकी अंग्रेज़ सरकार भविष्य में भारतीयों के बगावत को आसानी से नहीं होने देने की मंशा के बीच कलकत्ता गेट के स्थान को समेटते रेलवे पटरी बिछाई गयी। कुछ अंग्रेज अधिकारी दिल्ली में रेलवे के पक्ष में इस वजह से नहीं थे क्योंकि वे दिल्लीवालों को आजादी के पहले आंदोलन में भाग लेने की मुकम्मल सजा देना चाहते थे।

भारत के आधुनिक जमाने के प्रारंभिक बंदरगाह वाले शहरों के योजनाकार मिटर पार्थ (1640-1787) ने लिखा है "अंग्रेजों ने भारतीय शहरों की प्रकृति, भारतीयों के अंग्रेजों की गुलामी के विरूद्व दोबारा संघर्ष का बिगुल बजाने के भय और शहरों में नए निर्माण के लिए जगह बनाने के लिए पुराने शहर के केंद्रों को ध्वस्त करने की बातों को ध्यान में रखते हुए अपनी नीति में योजना और डिजाइन का पालन किया।" इस तरह, रेलवे का मुख्य मक़सद भविष्य में भारतीयों की सशस्त्र चुनौती से निपटने के लिए अंग्रेज़ सेना को दिल्ली पहुंचाना था।

दिल्ली की सुरक्षा को अपनी योजना को केंद्र में रखकर ही मेरठ में एक अंग्रेज छावनी बनायी गई क्योंकि वहाँ से अंग्रेज सेना आसानी से दिल्ली तक पहुंच सकती थी। इसके लिए रेलवे लाइन मेरठ, गाजियाबाद, लोनी,सीलमपुर से होते हुए दिल्ली तक बिछाई गई। यमुना नदी पर एक लोहे का पुल बनाया गया, जो कि दिल्ली को मेरठ से जोड़ता था। वर्ष 1866 के अंत में यह पुल यातायात के लिए खोल दिया गया। इस तरह, आखिरकार कलकत्ता और दिल्ली रेल यातायात से जुड़ गए।

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