Sunday, May 14, 2017

Poem on Father_पिता की याद आने का समय नहीं होता...




पिता की याद आने का समय नहीं होता...


पिता तुम जाने के बाद ही
क्यों याद ज्यादा आते हो
ऐसा हर बार मेरे साथ ही होता है
या 
फिर कोई और भी घर में अकेले रोता है


हर बार चिता पर ही आंसू गिरे
मन में श्मशान वैराग्य जगे
बस कहने-सुनने में लगता है
जब अपने पर बीतती है, अलग ही होता है

तुम्हारे रहते कभी नहीं लगा
अकेलापन भी कोई महसूस करने वाली बात है
जब भी कोई ऐसी बात बोलता
लगता भला ऐसा भी सच में होता है!

याद की कोई लक्ष्मण रेखा नहीं होती
पिता के जाने से पहले या बाद में
कभी भी आ जाती है
निशब्द, चुपचाप, दबे पाँव

तुम्हारी बरगद सी उपस्थिति ने
जिंदगी की धूप-छाँव से परे रखा
जो भी सुनामी आई, तुमसे ही लौट गई
न आंच झेली, न तपिश सही

तुम्हारे संग जीवन ऐसा गूंथा था
जैसे आटे से संग पानी
रोटी संग सब्जी, शरीर संग सांस
कभी सोची न थी, अकेले जीने की बात

घर की दीवार पर लगी
तुम्हारी फोटो के बावजूद
अब खाली कुर्सी, बिना डांट का जीवन
बाहर ही नहीं भीतर तक तुम्हारे न होने का साक्षी है

पिता तुम जाने के बाद ही
क्यों याद ज्यादा आते हो
ऐसा हर बार मेरे साथ ही होता है
या फिर कोई और भी घर में अकेले रोता है

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