Saturday, May 20, 2017

Surajkund_a symbol of Hindu system of water harvesting_हिंदू वर्षा जल संचयन का प्रतीक सूरजकुंड

20.05.2017_दैनिक जागरण






















हरियाणा के बल्लभगढ़ (अब बलरामगढ़, जिला फरीदाबाद) तहसील की सीमा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से लगी हुई है। अंग्रेजी साम्राज्य के दौर में यह इलाका दिल्ली का ही एक हिस्सा हुआ करता था। दिल्ली की इस इलाके से भौगोलिक संलग्नता के अलावा ऐसी मान्यता भी है कि यहां का इतिहास, दिल्ली का ही इतिहास है। “इंपीरियल गैजेटियर ऑफ इंडिया” खंड-एक उपर्युक्त मान्यता का ही प्रतिनिधित्व करता है-इस जिले का इतिहास, दिल्ली नगर का इतिहास है, जिसकी अधीनस्थता में वह अनंत काल से विद्यमान है। यहां तक कि बल्लभगढ़ तथा फरीदाबाद जैसे शहरों का भी अपना कोई अलग स्थानीय इतिहास नहीं है, क्योंकि नगर (दिल्ली) की भव्य पुरातनता की निशानियां इन्हीं इर्द-गिर्द के क्षेत्रों में बिखरी पड़ी हैं।
दिल्ली के इतिहास से अभिन्न रूप से जुड़ा एक ऐसा ही जलाशय है। जिला गुड़गांव में तुगलकाबाद से लगभग तीन किलोमीटर दक्षिण पूर्व में सूरजकुंड है। इस जलाशय को तोमर वंश के राजा सूरजपाल ने, जिसका अस्तित्व भाट परंपरा पर आधारित है, दसवीं शताब्दी में निर्मित करवाया था। चट्टानों की दरारों से रिसने वाले ताजे पानी का तालाब, जिसे सिद्ध-कुंड कहते हैं, सूरज कुंड के दक्षिण में लगभग 600 मीटर पर स्थित है और कुछ धार्मिक पर्वों पर यहां बहुत बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री आते हैं। ‘कुंड’ संस्कृत भाषा का शब्द है। ‘कुंड’ का मतलब है तालाब या गड्ढा, जिसे बनाया गया हो। कुंड हमेशा मानव निर्मित ही हो सकता है। हिंदू मंदिरों और गुरूद्वारों के साथ कुंड और तालाब बनाए जाने की परंपरा रही हैं।
यह निर्माण पहाड़ियों से आने वाले वर्षा के पानी की एकत्र करने के लिए एक अर्ध गोलाकार रूपरेखा के आधार पर सीढ़ीदार पत्थर के बांध के रूप में हैं। यह कुंड इस तरह बना है कि आसपास की पहाड़ियों से बरसात के दौरान गिरानेवाला पानी बहकर इस कुंड में स्वतः ही इकट्ठा हो जाता था। इस कुंड से पानी के इस्तेमाल के लिए पत्थर की सीढ़ियां बनी हुई थीं। कुंड में पानी की स्थिति के अनुसार इन सीढ़ियों से होकर पानी तक आया-जाया जा सकता है। जानवरों को पानी पिलाने के लिए एक अलग रास्ता बनाया गया था। सूरजकुंड और दिल्ली में बनाई गई बावड़ियों में एक ही समानता कही जा सकती है और वह है पानी तक पहुंचने के लिए बनी सीढ़ियां।
इसके पश्चिम में सूर्य का एक मंदिर था जिसके कुछ नक्काशीयुक्त पत्थरों को हाल ही में जलाशय से पुनः प्राप्त किया गया है अथवा जिनका बाद के निर्माणों में पुनः इस्तेमाल किया गया है। अब इस मंदिर के अवशेष ही रह गए हैं। इसलिए इस सूरजकुंड के मंदिर का अपने समय में क्या महत्व रहा होगा, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है। बाद में एक किला बन्द अहाता जिसे अभी तक गढ़ी कहा जाता है इस मंदिर के परंपरागत स्थल के आसपास पश्चिमी किनारे पर निर्मित किया गया। सूरजकुंड दिल्ली और उसके आसपास जल संरक्षण और संवर्धन का सबसे पुराना उदाहरण है। उस दौर में बने और अब तक बचे हुए प्रतीकों पर नजर डालें तो सूरजकुंड को अपने दौर में वर्षा जल संचयन का सबसे अनोखा उदाहरण कह सकते हैं।

1 comment:

Vijay Kranti said...

Nalin Bhai,Its quite interesting. Your wtiting make very ordinary looking places and monunents very important and meaningful. Everytime I read your article, my photographer's itching gets activated. Thanks. Vijay Kranti

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