big media houses_normal journalist_मीडिया में बाप-बढ़ा न भैया, सबसे बड़ा
मीडिया में बाप-बढ़ा न भैया, सबसे बड़ा...
जब बड़े मीडिया समूह पत्रकार-कैमरामैन-फोटोग्राफर को सड़क पर ला देते हैं तब कोई क्लब आवाज़ नहीं उठाता!
कितने बड़े मीडिया समूह अपने यहाँ वेजबोर्ड पर वेतन दे रहे हैं...
एक का तो मैं खुद भुक्तभोगी हूँ, जहाँ मणिसाना के नाम पर "अंगूठा" दिखा दिया गया.
आज के कितने बुजुर्ग पत्रकारों ने "कुर्सी" पर रहते हुए, अपने से कनिष्ठ पत्रकारों को वेजबोर्ड के अनुसार वेतन न मिलने पर "लाला" से ऊँची आवाज़ में बात भी की?
वेतन दिलाने की बात तो दूर की है...
साहस की पत्रकारिता ने कब कस्तूरबा गाँधी मार्ग पर अख़बार की ईमारत के बाहर धरने पर बैठे पत्रकारों की खबर छापी?
या अर्चना सिनेमा वालों ने नोएडा के टीवी समूहों से बाहर किए पत्रकारों के फिल्म सिटी में जलूस की खबर दिखाई, सो फिर काहे का जमावड़ा, काहे की लड़ाई!
शायद इसीलिए पत्रकार-संपादक-मंत्री रहे "शख्स" ने कभी "क्लब" की सदस्यता तक नहीं ली.
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