Saturday, June 17, 2017

Rajo ki bain_राजो की बैन_water body

दैनिक जागरण_17062017



महरौली में गंधक की बावली के 400 मीटर दक्षिण की ओर दूसरा चार स्तरों वाला सीढ़ीयुक्त कुआं है जो राजो की बैन के नाम से जाना जाता है, ऐसा लगता है कि उसको यह नाम राजों (कारीगरों) द्वारा इस्तेमाल किये जाने के कारण मिला था। माना जाता है कि इस बावड़ी के पानी का इस्तेमाल इस इलाके में रहने और निर्माण कार्यों में लग राज और मिस्त्रियों द्वारा किया जाता था। इसलिए इसका नाम “राजों की बैन” पड़ा।


इसकी ऊपर की दीवारों के भीतर की सीढ़ियां उसे एक मस्जिद से जोड़ती हैं, जिसकी छतरी में 912 हिजरी (सन् 1506) का एक अभिलेख है जिसमें यह बतलाया गया है कि यह सिंकदर लोदी (1498-1517) के शासन काल में बनवाया गया था। लोदी वंश दिल्ली पर शासन करने वाला एक ऐसा वंश रहा, जिसने यहां पर अपने किसी शहर का निर्माण नहीं किया, लेकिन उनके निर्माण के नमूने आज भी शहर में दिखाई देते हैं।

यह इमारत चार मंजिला है। इसके चारों ओर कमरे बने हुए हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है। इतिहासकार परसीवल स्पीयर ने अपनी पुस्तक “दिल्लीःइट्स मान्यूमेंट एंड हिस्ट्री” में लिखा है कि एक समय में इस बावड़ी को सूखी बावड़ी भी कहा जाता था, क्योंकि इसमें पानी नहीं रह गया था। इस बावड़ी के साथ एक मस्जिद भी बनी हुई है। यह बावड़ी दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा महरौली क्षेत्र में विकसित किए गए पुरातात्विक पार्क में स्थित है। जमाली कमाली से करीब आधा किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर चलने पर यह बावड़ी मिलती है।

इसे “राजो की बाई” के नाम से भी पुकारा जाता है। दिल्ली के इतिहास और उसकी इमारतों पर किताब लिखने वाले सर सैयद अहमद के अनुसार संस्कृत साहित्य में ऐसे सीढ़ीदार कुंओं का जिन्हें बाई, दाईं या बावलियां कहते थे विस्तृत उल्लेख मिलता है। मुस्लिम शासकों ने बावलियों को बढ़िया ढंग से मनोरंजन स्थलों के रूप में बनाया था।


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