आज प्रगति मैदान में आने वाले दर्शक को शायद ही यह बात पता होगी कि यहाँ पर बने ‘हॉल ऑफ नेशंस’ में त्रिशूल के दृश्य फिल्माए गए थे। इस फिल्म में पूनम ढिल्लो अपने घर से भागकर ‘हॉल ऑफ नेशंस’ ही आई थी और प्रेम चोपड़ा से लेकर बाकि नायकों की लड़ाई के दृश्य इसी हॉल में फिल्माए गए थे।
यश चोपड़ा की निर्देशित त्रिशूल में फिल्म में भूमि-भवन निर्माता आर के गुप्ता (संजीव कुमार) और उसके परित्यक्त-नाजायज बेटे विजय (अमिताभ बच्चन) की कहानी में राजधानी का फैलता शहरी जनजीवन और सटे हुए उपनगरों जैसे फरीदाबाद और गुड़गांव के उभरने की बात पृष्ठभूमि में साफ झलकती है। फिल्म की बाप-बेटों के आपसी और पारिवारिक संघर्ष की कहानी के साथ लोधी गार्डन, गोल्फ क्लब, जिमखाना, सरकारी कार्यालयों, प्रगति मैदान और अशोक होटल का जुड़ाव सहज रूप से स्थानिकता को एक प्रमाणिकता प्रदान करता है। देश में आज़ादी के २५ बरस पूरे होने पर प्रगति मैदान में बने ‘हॉल ऑफ नेशंस’ का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 3 नवंबर, 1972 को किया था। इसका डिजाइन राज रेवल-इंजीनियर महेंद्र राज ने बनाया था। उल्लेखनीय है कि एक समय में यहाँ पर 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध वास्तुकला ढांचों की एक प्रदर्शनी आयोजित की गयी थी।
भारत के आधुनिक वास्तुकला के विकास में “हॉल ऑफ नेशंस” एक बहुत ही महत्वपूर्ण इमारत के नाते स्थान है। यह 1970 के दशक में देश में उपलब्ध संसाधनों के साथ एक विशाल ढांचे और स्थान वाली संरचना खड़ी करने की पेशेवर क्षमता का प्रतीक थी, जिसे इस इमारत के मामले में सीमेंट, कंक्रीट और कुशल मजदूरों के सहयोग से खड़ा किया गया था। हाल ही में ‘हॉल ऑफ नेशंस’ की इमारत को ढहा दिया गया। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) ने इस साल अप्रैल में इस इमारत को न ढ़हाने को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी पर उसे न्यायालय ने खारिज कर दिया।
प्रगति मैदान में भारत व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) का मुख्यालय है, जो कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत एक नोडल एजेंसी के रूप में काम करता है। आईटीपीओ के परिसर में हर साल एक विश्व प्रसिद्ध वार्षिक व्यापार मेले का आयोजन होता है।
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