Saturday, June 17, 2017

Barapula_water drain_गंदगी नहीं ताज़े पानी का स्त्रोत था बारापुला




दक्षिणी दिल्ली में रिज से पानी के यमुना नदी की ओर बहाव की ओर नजर डालें तो बारापुला, तेहखंड और बुधिया नाला तीन ऐसे रास्ते हैं, जिनसे होकर रिज की पहाड़ियों का पानी यमुना में पहुंचा करता था। ये तीनों अब नाले के रूप में दिखाई देते हैं जो शहर की गंदगी को यमुना में पहुंचाने का काम करते हैं। इन नालों ने कभी अच्छे दिन भी देखे थे। मानसून के दिनों में तेज रफ्तार से पानी की निकासी करने वाली ये नाले पहाड़ी नदियों की तरह काम करते थे।


मार्ग से प्रकाशित जट्टा-जैन-नेउबाउर की संपादित “वाटर डिजाइन, एनवायरनमेंटएंड हिस्ट्रिज” पुस्तक में जेम्स एल वेशकोट “बारापुला नाला और इसकी सहायक धाराएं, सल्तनत और मुगलकालीन दिल्ली में जल विभाजन की वास्तुकला” नामक अध्याय में लिखते हैं कि दिल्ली रिज से लेकर मैदान, महरौली से लेकर शाहजहांनाबाद तक का समूचा क्षेत्र एक बड़े जल स्त्रोत से सिंचित होता था। यह पानी के एक प्रमुख प्रवाह का रूप ले लेता था जो कि आज बारापुला नाला (अब इस नाम के बने नए फ्लाईओवर के कारण प्रसिद्ध) के नाम से जाना जाता है। बारापुला नाला आज के शहरी गांव निजामुद्दीन से होते हुए बहता हुआ एक प्रमुख जल स्त्रोत से मिलता है, जिसे आज कुशक नाला के रूप में जाना जाता है।



जेम्स एल वेशकोट के अनुसार, बृहत्तर दिल्ली में पानी की चार प्रमुख धाराएं थी। इनमें से एक हौजखास तालाब में पहुंचती थी, कुशक नाला दक्षिणपूर्व दिल्ली को सिंचित करता था, मध्य रिज की पहाड़ी धाराएं थीं और अंतिम धारा पानी की घुमावदार धाराएं थीं, जिनसे लोदी मकबरे के बागों और गांवों को पानी पहुँचता था।



जब हम किला रॉय पिथौरा की पानी की विभिन्न धाराओं से दिल्ली के जल प्रवाह क्षेत्र तक की यात्रा करते हैं तो हमें इनके व्यापक अंर्तसंबंध का पता चलता है। यहाँ नदी के किनारे की बसावट का इलाका किलोकरी के नाम से जानी जाती थी। यह बारापुला के यमुना नदी में मिलने के स्थान के ठीक दक्षिण में है। 1286 ईस्वी में सुल्तान कैकुबाद ने किलोकरी का विस्तार किया था। ऐतिहासिक पुस्तकों में यहां पर सुन्दर महल और उद्यानों के होने का वर्णन है। ऐसा माना जाता है कि शायद नाले और नदी दोनों में पानी की बाढ़ के कारण किलोकरी अधिक समय तक आबाद नहीं रही जबकि आज के आधुनिक समय में यहां घनी शहरी आबादी का विकास देखने को मिलता है।



कुशक नाला में मिलने वाली पानी की मुख्य धारा में पहाड़ी ढलानों की छोटी धाराओं सहित तुगलकाबाद से ऊपरी क्षेत्र में विभिन्न जल स्त्रोंतों से पानी आता था। कुशक नाला में मिलने वाले जल स्त्रोतों का समागम, एक तुगलक-कालीन जल नियंत्रण संरचना सतपुला बांध के ऊपर होता था। सतपुला अंग्रेजों से पहले की दिल्ली का विशालतम और सर्वाधिक परिष्कृत जल नियंत्रण ढांचा है। मुहम्मद बिन तुगलक ने 1343 ईस्वी में इसको बनवाया था।



जेम्स एल वेशकोट के अनुसार, सतपुला बांध से नियंत्रित पानी एक संकरी जलधारा के रूप में निकलता था, जिसकी दाई ओर चिराग-दिल्ली गांव, और बाई ओर सिरी का किला था। अफसोस की बात है कि आज इसके ठीक उलट यह दुर्गंध-कचरे से भरा हुआ नाला चिराग दिल्ली गुजरता हैं।



बारापुला नाला के आगे बढ़ने के साथ इसमें दक्षिण से, अब्दुल रहीम खानखाना (प्रसिद्ध हिंदी मध्यकालीन कवि) के भव्य मकबरे के बाग से होकर बहने वाली पानी की छोटी उपधाराएं आकर मिलती हैं। दिल्ली के इतिहास में इस कब्र परिसर शायद नाले के सामने बेहतरीन बगीचा था। इस नाले पर अभी तक बची हुई सबसे पुरानी जल संरचना मुगलकालीन बारापूला का पुल है, जिस पर इस नाले का नाम है।



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