बारिश के मौसम में जैसे लाल कीड़े न जाने जमीन से, इधर-उधर से निकल आते हैं, कुछ ऐसे ही क्रिकेट के चैंपियंस ट्राफी मुकाबले में भारत-पाकिस्तान के मैच से पहले फेसबुक पर लाल रुदालियों ने क्रिकेट को लेकर विधवा विलाप शुरू कर दिया है.
इस एकतरफा विमर्श में भी मजदूर, किसान आ गए हैं, बांग्लादेश क्रिकेट टीम के कप्तान भी.
मान न मान मैं तेरा मेहमान. मुहम्मद अली की वियतनाम युद्ध से जगी अंतरात्मा की आवाज़ लगता है बांग्लादेश क्रिकेट टीम के कप्तान को सुनाई नहीं डी. नहीं तो बांग्लादेश में १९४७ से इस्लामी जिहाद के नाम पर जारी हिन्दू उत्पीड़न-संहार से मशरफ़ मुर्तजा की आत्मा जरुर जगती.
पश्चिम बंगाल की जिलों में बांग्लादेश से हुई घुसपैठ से हुआ जनसँख्या के चरित्र में परिवर्तन पर लाल रुदालियों के आंसू दिखाने के लिए भी नहीं निकलेंगे.
देश विरोध से विरोधी देश के प्रच्छन्न समर्थन से अधिक त्रासदी क्या हो सकती है. ऐसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न हो तो ही बेहतर!
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