मुझे टीवी इसीलिए संवेदनाहीन माध्यम लगता है क्योंकि वह मानवीय सुख-दुख को नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हुए उसकी निजता को नष्ट कर देता है । यह एक प्रकार से निजता का प्रकटीकरण अथवा सार्वजनिकरण है जो किसी भी लिहाज से उपयुक्त नहीं है । न व्यक्ति के रूप में और न ही समाज के रूप में ।
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