दिल्ली विधानसभा के सफल चुनाव का संचालन जिस इमारत में हुआ है, वहां कभी अंग्रेजों के समय में सेंट स्टीफंस कॉलेज चलता था। कश्मीरी गेट स्थित राज्य चुनाव आयुक्त कार्यालय की इस पुरानी इमारत के निर्माण की भी खास कहानी है। इसी इमारत में कभी महात्मा गांधी ने डेरा जमाया था। इस कॉलेज में आजादी के दीवानों ने भी पढ़ाई की थी तो यहां से निकले कई छात्र भारतीय राजनीति और शासन में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इस इमारत का इतिहास भी भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा जितना ही रोचक और विविधतापूर्ण है ।
सेंट स्टीफंस कॉलेज का पहला उल्लेख दिल्ली मिशन की द सोसाइटी रिपोर्ट फार द प्रोपेगेशन आफ द गॉस्पल में मिलता है। सन् 1854 में ईस्ट इंडिया कंपनी के दिल्ली स्थित पादरी मिडग्ले जॉन जेनिंग्स की पहल पर सोसायटी के काम के लिहाज से राजधानी में इसकी शाखा खोली गयी। सन् 1857 में देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व जेनिंग्स ने करीब 1853-54 में सेंट स्टीफंस हाई स्कूल की स्थापना की। यह मुख्य विद्यालय चांदनी चौक के कटरा खुशहाल राय में एक किराए के घर में खोला गया था। स्कूल की यह इमारत शीशमहल कहलाती थी, जिसका स्वामित्व अंतिम मुगल सम्राट के एक वजीर अशरफ बेग के पास था। उनकी एक बेटी अलिजा बेगम सम्राट की कई पत्नियों में से एक थी।
सन् 1870 के दशक में बंबई के बिशप डगलस के भारतीय शिक्षित वर्गों में काम करने के लिए ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के उत्कृष्ट विद्वानों को भेजने के उद्देश्य से कैम्ब्रिज मिशन की स्थापना हुई। इसी कड़ी में सेंट स्टीफंस स्कूल, जहां पहले से कलकत्ता विश्वविद्यालय के बीए के छात्रों की तैयारी के लिए कक्षाएं चलती थी, में एक फरवरी 1881 को विश्वविद्यालय की परीक्षा के लिए कक्षाएं शुरू हो गई और राजधानी में सेंट स्टीफंस कॉलेज अस्तित्व में आया। पादरी सैम्युल स्काट एलनट कॉलेज के पहले संस्थापक प्रधानाचार्य (1881-89) थे।
कॉलेज की शुरूआत तीन शिक्षकों और पांच छात्रों से हुई। पादरी एलनट और लैफराय के अलावा स्टाफ में पादरी एचसी कार्लयान भी शामिल थे जबकि पांच छात्रों में संसार चंद, हर गोपाल, सज्जाद मिर्जा, कृपा नारायण और राम लाल थे। आठ जनवरी 1889 को हुई मिशन कांउसिल की 100 वीं बैठक में एलनट ने एक कॉलेज के निर्माण के लिए दो संभावित स्थलों का प्रस्ताव रखा। पहली लाहौरी गेट के बाहर और दूसरी कश्मीरी गेट पर प्रोविनशियल बैंक के सामने। जिसमें दूसरी जगह की कीमत 5,000 रुपए थी। इनमें से कश्मीरी गेट की जगह का चुनाव किया गया। सन् 1890 में लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सर चार्ल्स इलियट, जो कि बाद में बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर बने, ने कश्मीरी गेट पर इमारतों के निर्माण के लिए नींव का पत्थर रखा। इसमें मुख्य भवन का डिजाइन जयपुर राज्य के तत्कालीन चीफ इंजीनियर कर्नल सर सैमुअल स्विंटन जैकब ने तैयार किया। कश्मीरी गेट पर इमारतों के निर्माण की लागत करीब 92 हजार रुपए आई थी।
सन् 1886 में सुशील कुमार रुद्र कॉलेज के स्टाफ में शामिल हुए और 1906 से 1923 तक कालेज के प्रधानाचार्य रहें, वे इस कालेज के पहले भारतीय प्रधानाचार्य थे। सन् 1904 में पादरी चॉर्ल्स एंड्रयूज कॉलेज स्टाफ में शामिल हुए। वे कॉलेज के प्रधानाचार्य रुद्र के साथ महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ ठाकुर टैगोर के एक करीबी दोस्त बन गए। सन् 1907 में एंड्रयूज ने कॉलेज पत्रिका की स्थापना की। रुद्र की महात्मा गांधी और सीएफ एंड्रयूज से घनिष्ट मित्रता थी। उल्लेखनीय है कि असहयोग आंदोलन का मसौदा और खिलाफत आंदोलन के दावे से संबंधित अंग्रेज वायसराय को भेजे खुले पत्र का प्रारूप कश्मीरी गेट स्थित कालेज के प्रधानाचार्य रुद्र के निवास पर ही तैयार किए गए थे। तीन अक्तूबर, 1914 को विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कॉलेज का दौरा किया।सन् 1915 में अपनी पहली दिल्ली यात्रा के दौरान महात्मा गांधी यहीं ठहरे थे।
जब सन् 1922 में भारतीय विधानमंडल के एक अधिनियम से दिल्ली विश्वविद्यालय स्थापित किया गया तो विश्वविद्यालय से जुड़े तीन कालेजों में से एक सेंट स्टीफंस भी था जबकि दो अन्य हिंदू और रामजस कालेज थे। सेंट स्टीफंस के छात्रों में से दो, डॉ. खान बहादुर अब्दुर रहमान (1930-34) और राय बहादुर डॉ. राम किशोर (1934-1938), दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने।
कॉलेज के एक और छात्र लाला रघुबीर सिंह दिल्ली के मॉडर्न स्कूल के संस्थापक थे। सर छोटूराम, सन् 1937 में नाइट की उपाधि पाने वाले सेंट स्टीफन कॉलेज के पहले छात्र थे। वर्तमान में, राज निवास मार्ग पर स्थित दिल्ली युनाइटेड क्रिश्चियन सीनियर सेकेंडरी स्कूल सन् 1854 में स्थापित पुराने सेंट स्टीफन स्कूल का ही एक हिस्सा है। सेंट स्टीफंस कॉलेज शताब्दी वर्ष में 1 फरवरी 1981 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक डाक टिकट जारी किया था।
(सांध्य टाइम्स, दिल्ली में 19.12.2013 को प्रकाशित )
No comments:
Post a Comment