Saturday, October 4, 2014

रतौंदी colour blindness



मन का दर्द जब कागज़ पर उतरता है तो फिर चढ़ते नशे की तरह रोके नहीं रूकता.
सवाल पर यही है कि बने रहो पगला, काम करेगा अगला वाले तंत्र में भरोसा रखना कितना बड़ा छलावा है, क्या इतनी बार, इतनी कीमत चुकाने के बाद भी हमको सच्चाई दिख नहीं रही या फिर हम भी रतौंदी के शिकार है!

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