अपने नकार भाव में, माँ-पिता को लाना ठीक नहीं, अब जो है, वह माँ-पिता का प्रतिरूप है.
अर्ध नारीश्वर का आख्यान व्यर्थ नहीं है. अपना दर्द ही तो अपनी ताकत है, उसे जाया क्यों किया जाये.
जब दधीची अपना देह दान कर सकते हैं, एक बड़े कारक के लिए. एक कारण बन सकते हैं, आसुरी-नकारात्मक शक्ति के उन्मूलन का तो क्या हम इतने गए गुजरे हैं जो माता-पिता की ओट में अपने दर्द का ठिकाना खोजे.
कतई नहीं.
No comments:
Post a Comment