एक 'चाय वाले' को पीएम बना दिया, आप बांचते रहिये 'कैपिटल'...गुजरात से लेकर दिल्ली और अब फिर तमिलनाडु.…
यहाँ की जनता की समझ तो देखो, दासों के दास, लाल लंगोठ वाले की चालीसा जनता-जनार्दन ने मन ही मन कंठस्थ कर ली और नामुराद कैपिटल की दास नहीं हुई...
मेरे आइआइएमसी के हिंदी के बैच (1995) में भी एक साथी कामरेड ने संस्थान में हिंदी दिवस वाले दिन कुछ ऐसी ही बात कही थी कि यहाँ मौजूद ज्यादातर छात्रों ने कार्ल मार्क्स की "दास कैपिटल" नहीं पढ़ी है. जिस पर मेरा कहना था कि अपने समाज को समझने के लिए ज्यादा जरूरी तुलसीदास की "रामचरितमानस" को पढ़ना है, जिसे हमारे कॉमरेड ने भी नहीं पढ़ा था....
इतिहास सही में खुद को दोहराता है, पढ़ा था. आज मान लिया.
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