पत्रकारिता की जाति_जातिगत पत्रकारिता_Casteist Media_Media and Caste
यूपी में जेपी की माया में पिछड़ों-दलितों के लिए नौकरियों की बहार आ गई थी!
मीडिया में दलित के संपादक बनते ही अचानक पिछड़ों-वंचित समाज की पत्रकारों के लिए नौकरियों की बाढ़ आ गई!
पत्रकारिता में नया शगल चला है, जाति को कोसने का!
जाति है कि जाती नहीं।
खुद को वंचित, दलित और अल्पसंख्यकों का हितैषी बताने और संवेदना जताने वाले झंडाबदार पत्रकार अपनी जाति का खुलासा नहीं करते!
न ही यह बताते है कि खुद उन्होने कहाँ ब्याह किया? आखिर शहर में रोटी बेशक जाति के घेरे से बाहर हो गयी हो पर बेटी तो अभी भी घेरे में ही है।
फिर इस घेरे में हिन्दू, मुसलमान और क्रिस्तान सभी हैं। मोर्चा बराबरी का तभी हो जब दूसरे को सार्वजनिक रूप से जातिवादी नाम से पुकारने और टप्पा लगाने वाले बड़का प्रगतिशील पत्रकार अपनी जाति और विवाह का भी खुलासा करें।
नहीं तो मेरा अपना अनुभव है कि आईआईएमसी में साथी रहा एक ऊंची जाति वाले अब नामचीन टीवी पत्रकार को प्रगतिशील, वंचित, दलित और अल्पसंख्यकों का मसीहा बताकर ऐसे ही ताल ठोकने वाले हल्ला-ब्रिगेड ने नाहक ही दूसरों की नज़र में खलनायक बना दिया है।
ऐसे में जातिगत विमर्श बढ़कर अंतर-जाति यहाँ तक कि वर्ण-संकर जाति तक पहुंचेगा और फिर गोत्र तक!
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