Wednesday, June 22, 2016

Hindu_Vivekanand_हिंदु_स्वामी विवेकानंद

मैं समझता हूँ, इसका उद्देश्य सभी को अपनाना है, किसी का तिरस्कार करना नहीं। मैं कट्टरता वाली निष्ठा भी चाहता हूँ और भौतिकतावादियों का उदार भाव भी चाहता हूँ। हमें ऐसे ही हृदय की आवश्यकता है जो समुद्र सा गंभीर और आकाश सा उदार हो। हमें संसार की किसी भी उन्नत जाति की तरह उन्नतिशील होना चाहिए और साथ ही अपनी परम्पराओं के प्रति वहीं श्रद्धा तथा कट्टरता रखनी चाहिए, जो केवल हिंदुओं में ही आ सकती है।

-स्वामी विवेकानंद



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