Sunday, June 5, 2016
dalit of facebook_आभासी दुनिया का अछूत
संयोग है कि दोनों मित्र ब्राह्मण है, सो आज से मैं भी एक के लिए 'अछूत' हुआ, चाहे आभासी दुनिया में ही सही। अब लग रहा है कि समाज की पांत से बाहर किए जाने का क्या अर्थ होता है।
ज्ञान पर किसी एक का एकाधिकार नहीं सो बहिष्कार करने वाले को उसका 'कारण' भी बताना चाहिए। इससे किसी की मित्रों की संख्या भी नहीं बदेगी क्योंकि उसे स्वीकारने से पूर्व तिरिस्कृत करने का कारण उजागर करना होगा।
अब मेरे मित्र कहेंगे कि मैं बंडल मार रहा हूँ नहीं भाई मैं सही कह रहा हूँ।
मैंने यह बात महसूस की की है कि मेरे अकेले यही कामरेड मित्र अपवाद नहीं है, एक और पढ़े-लिखे ब्राह्मण मित्र है, वे भी 'लाल झंडे' के अपकर्म को स्वीकारने की बजाए 'भगवा रंग' के दोष-अवगुण गिनने लग जाते हैं।
सो यह व्यक्ति का आचार नहीं, विचार का व्यवहार है।
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