फेल होना और पढ़ाई पूरी न करने का नसीहत देने से कोई संबंध नहीं होता। कोई चाह कर फेल नहीं होता न ही पढ़ाई अधूरी छोड़ता है। पर इसका मतलब वह अपने अनुभव न बांटे या दूसरों को बात न कहें। व्यक्ति का लिहाज उचित है पर विचार को लेकर वाद-विवाद भी संवाद का भी भाग है।
अगर हम बात कहते हैं तो फिर सुनने का भी लिहाज होना चाहिए। अगर कोई सही बात लिखी है, अपनी नज़र में तो फिर माफी का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता!
मेरा सात साल का बेटा ही मेरी बात से राजी नहीं होता सो मुझे अपनी बात मनवाने और मानने का कोई विचार कभी भी मन में नहीं रहता। बात करने से अच्छा होता है, यही शुभ है संवाद में। बाकि पढ़ना काफी कुहासा दूर करता है।
हम अपने विचार और व्यवहार की कसौटी स्वयं है सो अपने को ही कसौटी पर कसना ठीक होता है। सो खुश रहकर, खूब पढ़ना ही बहस करने के लिए तैयार करता है।
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