परंपरा और भाषा से प्रकाश_rising light_tradition_langauage
मेरा कुछ नहीं, मैं तो बस बीन लेता हूँ फूल।
अपनी परंपरा और भाषा से।
नए अर्थ-रूप को समझने की कोशिश में।
अज्ञेय की कविता 'हरा अंधकार' के शब्दों में, "प्रकाश मेरे अग्रजों का है कविता का है, परम्परा का है, पोढ़ा है, खरा है : अन्धकार मेरा है, कच्चा है, हरा है।"
मेरी अल्प बुद्धि-ज्ञान से जो समझ पता हूँ, बता देता हूँ। न मेरा बुद्धिजीवी होने का दावा है न ही बनने की इच्छा। मन होता है सो पढ़ता हूँ, मर्जी होती है सो लिखता हूँ जो समझ में आता है सो साझा कर लेता हूँ। न इससे ज्यादा न इससे कम।
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